Monday, May 27, 2013

IRON TABLETS SE HARYANA ME BACHO KI HO RAHI TABIYAT KHARAB

राज्य के स्कूलों में बच्चों में खून की कमी को पूरा करने के लिए बांटी जा रही आयरन एंड फौलिक एसिड टैबलेट्स बच्चों को बीमार कर रही हैं। जहां तबीयत खराब होने के डर से बच्चे दवा खाने से बचना चाहते हैं, वहीं टीचर अपने काम की खानापूर्ति करते हुए उन्हें जबरदस्ती दवा खिला रहे हैं। वे नहीं देखते बच्चा उसके लिए तैयार है या नहीं या उससे पहले उसने खाना खाया है या नहीं, बस बच्चे को जबरदस्ती टैबलेट लेने को
मजबूर करते हैं, जो उसके लिए घातक साबित हो रहा है। सभी मेडिकल हिदायतों को ताक पर रखकर दी जा रही इस टैबलेट से प्रदेश के १६ लाख बच्चों का स्वाथ्य दांव पर लगा हुआ है। हालात इतने गंभीर हैं कि लगभग हर जिले में दवा खाते ही बच्चों की तबीयत खराब हो रही। पिछले दिनों यमुनानगर, नारनौल और रतिया में बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराने तक की नौबत आई थी।
इधर लाहडपुर स्कूल के अध्यापक सुमेर चंद ने बताया कि दो बार गोली बांटने से इनकार किया गया,लेकिन इस बार उन्हें चेतावनी दी गई कि यदि दवा नहीं बांटी तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। ऐसे में उनके सामने दवा बांटने के सिवाय कोई चारा नहीं रह गया। इसलिए उन्हें दवा बांटनी पड़ी।
इधर स्वास्थ्य मंत्री राव नरेंद्र ङ्क्षसह से टैबलेट पर उठ रहे सवालों को लेकर तीन दिन तक लगातार संपर्क किया गया,लेकिन वे मिले नहीं। यहां तक कि उन्हें एसएमएस भी किया गया। इसके बाद भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। सोचा जा सकता है कि प्रदेश के नौनिहाल का स्वास्थ्य दांव पर लगा है, लेकिन मंत्री को उनकी चिंता ही नहीं है। ऐसे में सहज ही सवाल पैदा हो रहा है कि क्या दवा में खोट है, जिसके चलते मंत्री के पास कोई जवाब नहीं है।
भास्कर संवाददाता जब साढौरा के गांव लहाडपुर में पहुंचा तो लगभग सभी बच्चे दवा से डर हुए थे। इनका कहना है कि हमें दवा नहीं खानी, लेकिन मास्टर जी डरा कर दवा खिलाते हैं। अभिभावकों ने बताया कि जबरदस्ती बच्चों को दवा दी गई तो वे बच्चों को स्कूल ही नहीं भेजेंगे। दूसरी ओर छात्रा भावना की तबीयत पूरी तरह से सुधरी नहीं थी। भावना ने कहा कि वे तो घर से भरपेट खाना खाकर आई थी, लेकिन जैसे ही मिड डे मिल के साथ उन्हें गोली दी गई तो खाते ही एक दम चक्कर आना शुरू हो गया। इसके बाद पेट में तेज दर्द शुरू हो गया। भावना ने कहा कि उन्हें इस तरह की गोली नहीं खानी। बच्चियों के अभिभावकों ने बताया कि उन्हें अपने बच्चों को दवा नहीं खिलानी। इनका सवाल है कि दवा तो तबीयत ठीक करने के लिए होती है, यह कैसी दवा है, जो उनके बच्चों को अस्पताल तक भिजवा रही है। उन्हें इस दवा पर यकीन नहीं है।
यमुनानगर के साढौरा क्षेत्र के लाहड़पुर गांव के स्कूल में आयरन की गोलियों के कारण छह बच्चों की हालत खराब हुई। हालात बिगड़ते देख सभी बच्चों को अस्पताल में भर्ती काना पड़ा।
फतेहाबाद के समैण और चंद्रावल गांव के सरकारी स्कूलों में आयरन की गोलियां खाने से १३२ बच्चों की हालत बिगड़ी। उल्टी, दस्त और बुखार की शिकायत रही। ३२ बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
यमुनानगर जिले के पाबनी कलां गांव के सीनियर सेकंडरी स्कूल में आयरन की गोलियां खाने से ५५ बच्चे बीमार हुए। १८ को गंभीर हालत में जगाधरी सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया।
नारनौल के ताजपुर गांव के हाई स्कूल में आयरन की गोलियों से १८ बच्चे बीमार हुए। पेटदर्द व दस्त के बाद उन्हें अस्पताल पहुंचाना पड़ा।
यमुनानगर के फार्मासिस्ट ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अधिक तापमान पर दवा स्टोर की जाए तो इसमे कैमिकल रिएक्शन हो जाता है। क्योंकि इस दवा में आयरन और फौलिक एसिड है, इसलिए अधिक तापमान पर टैबलेट के खराब होने का अंदेशा रहता है। इनका कहना है कि कई बार खराब दवा की पहचान इसके रंग से की जा सकती है, लेकिन स्कूल में तो दवा दबाव में बांटी जा रही है। इसलिए दवा के कलर आदि पर शायद ही ध्यान दिया जा रहा हो। यदि दिया जाता तो गड़बड़ी पकड़ में आ सकती थी।
 टीचर मिड डे मिल के साथ ही टेबलेट बांट देते हैं, लेकिन होना यह चाहिए कि खाना खाने के कम से कम एक घंटे बाद दवा खानी चाहिए। क्योंकि खाली पेट दवा रिएक्ट कर सकती है। गर्मी होने की वजह से यूं भी शरीर में पानी की कमी है। इसलिए भी दवा अच्छे भले बच्चे को भी बीमार कर सकती है। ञ्च दूसरी दिक्कत यह है कि दवा हर बच्चे को दी जा रही है। यह तक नहीं सोचा गया कि किस उम्र और कितने वजन तक के बच्चे को दवा की कितनी डोज देनी है। ञ्च मिशन डायरेक्टर राकेश गुप्ता खुद स्वीकार कर रहे हैं कि हर बच्चे को एक एक टैबलेट दी जा रही है। लेकिन कुछ ऐसे भी बच्चे हैं, जिनमें खून की कमी ज्यादा है या उनका वजन कम है। ऐसे
 दवा की यह एक जैसी डोज उनके लिए जानलेवा साबित हो सकती है।
बच्चों की सेहत से किस कदर खिलवाड़ हो रहा है, यह भास्कर की पड़ताल में पता चला। दवा शिक्षक बांट रहे हैं। मजे की बात तो यह है कि टीचर को ट्रेनिंग ही नहीं दी गई। मिशन के इस प्रोजेक्ट से जुड़ी एक डॉक्टर ने बताया कि हमने तो एचओडी को ट्रेनिंग दी। उन्हें यह ट्रेनिंग आगे टीचर को देनी थी। अब उन्होंने यह ट्रेनिंग दी या नहीं, हमें पता नहीं। कई टीचर्स ने बताया कि उन्हें बताया ही नहीं गया दवा कैसे बांटनी है। इस अधिकारी का यह जवाब न सिर्फ अभियान की गंभीरता पर सवाल खड़ा कर रहा है, बल्कि इस बात का भी साफ संकेत दे रहा है कि मासूमों की सेहत से किस हद तक खिलवाड़ हो रहा है।
दवा मिशन से हेल्थ विभाग के सरकारी अस्पताल में भेजी जाती है। यहां से स्कूलों में भेजी जा रही है। दवा के डि?बे पर साफ हिदायत है कि इसे ३० डिग्री तापमान पर स्टोर करे। लेकिन स्कूलों में दवा अलामारियों में रखी जा रही है। गर्मी में जहां बाहर का तापमान ४६ डिग्री से भी अधिक हो रहा है, वहीं अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्कूल अलमारी में जहां दवा स्टोर की जाती है, क्या तापमान होगा।

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