Friday, May 31, 2013

उपलब्धता का संकट:EDITORIAL OF DAINIK JAGRAN DATED 31.05.13

सर्वशिक्षा अभियान के तहत स्कूलों में पहली से आठवीं तक के बच्चों को स्तरीय व रंगीन पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध करवाने का शिक्षा विभाग का निर्णय बच्चों को निश्चित तौर पर रुचिकर लगेगा। प्रिंटिंग की गुणवत्ता के साथ कंटेंट का उच्च स्तर कायम रखने की विशेष जिम्मेदारी तो विभाग पर रहेगी ही, शिक्षा बोर्ड को भी मानकों पर खरा उतरना होगा। सर्वशिक्षा अभियान सरकार की सर्वाधिक महत्वाकांक्षी योजना है। जिस लक्ष्य को सामने रख कर इसकी कल्पना की गई थी उसे पूरा होने में अभी काफी समय लगने
की संभावना है क्योंकि मार्ग में स्वयं ही इतने अवरोध खड़े किए जा चुके कि गति तेज करना संभव नजर नहीं आ रहा। विभाग को पहले सुनिश्चित करना होगा कि पाठ्य पुस्तकों का वितरण समय पर हो। वर्तमान सत्र में कम से कम एक दर्जन ऐसे मामले सामने आ चुके जब स्कूलों में पुस्तकें नहीं पहुंची। पिछले सत्र में दर्जनों शिकायतें थीं कि आधा सत्र बीतने के बाद पुस्तकें उपलब्ध हो पाईं।
स्कूलों के स्टोर में पुस्तकें महीनों, कई बार तो वर्षो धूल फांकती हैं, उन्हें दीमक चाट जाती हैं पर विद्यार्थियों को नहीं मिलती। गुणवत्ता सुधारने की नई मुहिम में यह बात भी शामिल कर ली जाए तो बेहतर होगा कि पुस्तकें दीमक प्रूफ और धूल प्रूफ भी हों। इसके साथ यह बिंदु भी जोड़ा जाए कि एक पुस्तक कई सत्रों तक इस्तेमाल की जा सके। यह व्यवस्था की जाए कि यदि समय पर पुस्तकें स्कूलों तक नहीं पहुंची तो जिम्मेदार किसे ठहराया जाएगा? उसे क्या सजा दी जाएगी? छात्रों को हुए नुकसान की भरपाई किस प्रकार की जाएगी? अभी तक उपलब्ध रिकॉर्ड से यह तथ्य सामने आ रहा है कि पुस्तक न पहुंचने के मामले हर साल बढ़ रहे हैं। शिक्षा विभाग के साथ मिल कर शिक्षा बोर्ड इन खामियों को दूर करने का बीड़ा उठाए। आंकड़ों के आलोक में सर्वशिक्षा अभियान यानी एसएसए में इतने छिद्र दिखाई देने लगे हैं कि समय रहते सरकार ने गंभीरता नहीं दिखाई तो इसकी हालत आइपीएल के समकक्ष हो सकती है। उसे फिक्सिंग के कारण बदनामी मिली , इधर विसंगतियां नासूर बन रही हैं। फिलहाल सबसे बड़ी जरूरत सर्वशिक्षा अभियान का आधार मजबूत करने की है। उद्देश्य तभी पूरा होगा जब पुस्तकें समय पर छपें और बच्चों तक पहुंचें।

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