Monday, May 20, 2013

AIDMMCHE ME HAI 50 THOUSAND APPLICANTS

एलिजिबिलिटी एमबीबीएस उत्तीर्ण छात्र। जिस विषय के लिए एग्जाम दे, उसके क्राइटेरिया के हिसाब से संबंधित विषयों में एमडी/एमएस/डीएनबी किया हो। कई बार बदला नाम केजीएमसी का 1911 में इस इंस्टीट्यूट से पहली बैच पास आउट हुई, तब इसका नाम किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज था। २००२ में मायावती के शासनकाल में इसे यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया और साथ ही छत्रपति शाहूजी महाराज यूनिवर्सिटी नाम दिया गया। एक साल बाद ही मुलायम सिंह यादव की सरकार ने इसे फिर केजीएमयू नाम दिया। 2007 में मायावती ने फिर इसका नाम बदल कर छत्रपति शाहूजी महाराज मेडिकल यूनिवर्सिटी किया गया। लेकिन फिर से इसे किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी का नाम दिया गया। खुद की ब्रेन सर्जरी की, बनाई शॉर्ट फिल्म
फीस : किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के समय 35 हजार रु. फीस देनी होती है। सालाना फीस करीब 14 हजार रु.है। वहीं सीएमसी वेल्लोर के एमसीएच कोर्स की फीस करीब 23 हजार रु. है। यूपी में मेडिकल कॉलेजों के लिए एंट्रेंस एग्जाम किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी सहित उत्तर प्रदेश के अन्य मेडिकल कॉलेजों के डीएम/एमसीएच (डॉक्टर ऑफ मेडिसिन/ मास्टर ऑफ चिरिओलॉजी) कोर्सेस में एडमिशन के लिए ऑल इंडिया डीएम/एमसीएच एंट्रेंस एग्जाम 27 जून को होगा। इंटरेस्टिंग कोट ६५०० ईपू में ही हो गई थी सर्जरी की शुरुआत एग्जाम पैटर्न कोर्स ड्यूरेशन दोनों कोर्सेस के लिए तीन साल। कम्पीटिशन एआईडीएमएमसीएचईई-२०१३ दो कोर्स के लिए एक साथ अप्लाई एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया पर खरे उतरने वाले छात्र एक बार में दो कोर्सेस के लिए अप्लाई कर सकेंगे। हर कोर्स के लिए अलग क्राइटेरिया है। छात्र अपनी पसंद के इंस्टीट्यूट का प्रिफरेंस भी देंगे। नतीजों में टाई होने पर स्पेशलिटी पेपर के माक्र्स का आकलन होगा। यह भी समान होने पर एमबीबीएस माक्र्स और फिर उम्र के आधार पर छात्र को एडमिशन मिलेगा। रोचक अमांडा फील्डिंग एक ब्रिटिश आर्टिस्ट और साइंटिफिक डायरेक्टर हैं। वे हमेशा थकी हुई रहती थीं। पता चला उनके दिमाग में रक्त स्राव सामान्य रूप से नहीं होता। इसके लिए उन्हें ट्रीपैनेशन सर्जरी की जरूरत है। सालों तक जब उन्हें कोई सर्जन नहीं मिला, तब 27 साल की उम्र में उन्होंने खुद की सर्जरी करने का फैसला लिया। डेंटिस्ट की इलेक्ट्रिक ड्रिल की मदद से उन्होंने दिमाग में सुराख किया। सनग्लासेस पहने ताकि सर्जरी के दौरान आंखों में रक्त न जाए। सर्जरी के चार घंटे बाद उन्होंने खाना खाया और पार्टी में भी गईं। इसके बाद उन्होंने 'हार्टबीट इन द ब्रेन' नाम की शॉर्ट फिल्म भी बनाई। नॉलेज सर्जरी की शुरुआत संभवत: ईसा पूर्व ६५०० में ही हो गई थी। कुछ साल पहले आर्कियोलॉजिस्ट्स को एक पुराना स्कल मिला जिसमें ड्रिल किया गया था। फ्रांस में इस तरह के करीब 120 स्कल मिले। इनमें करीब 40 सुराख किए गए थे। इस सर्जिकल प्रोसेस को ट्रीपैनेशन कहते हैं जिससे दिमाग में ब्लड फ्लो आसानी से हो सकता है। रिजल्ट: ६ जुलाई 2013 90 सीटें र्जन : ऑपरेशन कब करना चाहिए यह सीखने में पांच साल लगते हैं, लेकिन कब नहीं करना चाहिए यह सीखने में बीस साल लग जाते हैं।

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