Wednesday, May 22, 2013

SHIKSHA VIBHAG BANA PARYOGSHALA

शिक्षकों को गैर शिक्षक कार्यो से मुक्ति दिलाने के लिए सरकार अर्से से प्रयासरत है लेकिन सफलता न मिलने के कारण गुरुजी को बाबूगीरी करने पर विवश होना पड़ा। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक एवं उच्च विद्यालयों में अध्यापकों को गैर शिक्षक कार्यो में झोंके जाने से रोकने के लिए ठेके पर सूचना मैनेजरों की नियुक्ति का प्रयोग कितना सफल होगा, यह जानने के लिए तो एकाध सत्र का इंतजार करना होगा पर शिक्षा
विभाग ने ऐसा फैसला भी किया है जो नए कदम को वहीं पर रोक सकता है। विभाग ने आठ सौ से अधिक सूचना अधिकारी तो नियुक्त कर लिये पर साथ ही सर्व शिक्षा अभियान के तहत लगभग ढाई वर्ष पूर्व इसी उद्देश्य के लिए लगाए गए सहायक खंड संसाधन समन्वयक यानी एबीआरसी को वापस शिक्षण कार्यो में लगाने का आदेश भी जारी कर दिया। विडंबना देखिये कि न तो गैर शिक्षण कार्यो में लगाते वक्त शिक्षकों से राय जानी गई, न शिक्षण कार्य में वापस भेजने के लिए सहमति ली। एबीआरसी की स्थिति फुटबॉल जैसी बना दी गई। जिस स्थान पर पहले उनकी नियुक्ति थी, वहां जेबीटी को मूल रूप में या पदोन्नत करके नियुक्ति दे दी गई। एबीआरसी को डेपुटेशन पर लगाया गया था, जिसमें शर्त होती है कि कर्मचारी के पूर्व कार्य स्थल को रिक्त रख कर डेपुटेशन पूरा होते ही पूर्व स्थान पर भेज दिया जाएगा। नौ सौ एबीआरसी को पिछला आदेश रद किए जाने की सूचना तो दे दी गई पर नए नियुक्ति स्थल के बारे में नहीं बताया गया। शिक्षा विभाग के नए प्रयोग से अनिश्चितता यकीनन बढ़ेगी। लक्ष्य का धुंधलापन और प्राप्ति के माध्यमों की दुविधा शिक्षा मार्ग को पथरीला बना सकती है। एबीआरसी आठवीं तक अध्यापकों की मदद के लिए लगाए गए थे तो क्या उनकी जगह राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत नई नियुक्ति होगी या ठेके पर भर्ती किए जाएंगे? एबीआरसी को शिक्षण कार्य में पुन: लय पाने में कुछ समय निश्चित तौर पर लगेगा, पर अचानक ऐसी क्या नौबत आई कि शिक्षा विभाग को यू टर्न लेना पड़ा? विभाग ने पहले इसे व्यावहारिक माना पर एकाएक अतार्किक क्यों लगने लगा? समझ से बाहर है कि शिक्षा विभाग गतिशीलता दिखाने के चक्कर में बार-बार पटरी से क्यों उतर जाता है? विभाग अपनी नीति व कार्यशैली की पुन:विवेचना करे और खामियों को दूर करते हुए अतार्किक प्रयोगों की पुनरावृत्ति रोके। शिक्षा की गरिमा और व्यवस्था की व्यावहारिकता, सार्थकता बनाए रखने के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण बेहद जरूरी है।

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