सौगात, उपहार बांटना प्रशंसनीय है पर बंदरबांट नहीं होनी चाहिए। चुनावी माहौल में राज्य सरकार ने रोडवेज कर्मचारियों, सफाईकर्मियों आदि के लिए अनेक घोषणाएं की, आमजन के लिए भी कई रियायतों की व्यवस्था की। सरकार को उन पात्रों के बारे में भी सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिए जिन्हें बार-बार केवल आश्वासन के सहारे टरकाया जा रहा है। अनुभव के आधार पर चयनित पीजीटी टीचरों को एक बार फिर आश्वासन मिला है कि उन्हें अगले माह नियुक्ति पत्र दे दिए जाएंगे। गर्मी की छुट्टियां समाप्त होते ही शिक्षा निदेशालय उनके लिए नियुक्ति पत्र जारी कर देगा। पीजीटी को नियुक्ति पत्र का आश्वासन कितनी बार मिल चुका, इसकी सही संख्या तो नहीं बताई जा सकती पर उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार सरकार का वादा पूरा होगा तथा एक और आश्वासन की नौबत नहीं आएगी। इन पात्रों को मुख्यमंत्री से मिलने में हर बार इतनी मशक्कत करनी पड़ती है कि सरकार की मंशा पर ही सवाल खड़ा हो जाता है। अनुभव के आधार पर सरकार ने 625 पीजीटी का चयन किया था जिनमें से केवल 145 को नियुक्तियां दी गईं, शेष को टरकाया जा रहा है। लगभग एक माह से वे शिक्षा निदेशालय के बाहर धरना दे रहे हैं पर कोई सुनवाई नहीं हो रही। अब प्रमाणपत्रों की जांच के नाम पर मानसिक प्रताड़ना का शिकार बनाया जा रहा है। सरकारी स्कूलों में निजी कंपनियों के मार्फत तैनात कंप्यूटर अध्यापकों को पिछले सात माह से वेतन नहीं
मिल रहा। उनकी पीड़ा पर अब तक केवल आश्वासनों की मरहम ही लगाई गई।1 अब शिक्षा मंत्री ने एक और आश्वासन दिया है कि इनके मामले की वह स्वयं जांच करेंगी। निजी कंपनियों ने शिक्षा विभाग के साथ हुए समझौते की शर्तो का उल्लंघन किया पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अतिथि अध्यापकों को लगातार आश्वासनों की भूल-भुलैया में उलझाया जा रहा है। हजारों अध्यापक और उनके परिवार अनिश्चय की स्थिति में जी रहे हैं पर कोई स्पष्ट राह नहीं दिखाई दे रही। गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में निश्शुल्क दाखिले के लिए कोरे आश्वासन मिल रहे हैं। सरकार को अपनी कार्यशैली बदलनी चाहिए। हर विभाग, पद के बारे में स्थिति स्पष्ट रखी जाए और कार्यशैली में पूर्ण पारदर्शिता बरती जानी चाहिए। यह नहीं भूलना चाहिए कि बार-बार वादे से मुकरने या फिर किसी निर्णय, घोषणा पर टरकाए जाने से संस्था, निकाय या सरकार की साख पर धब्बा लग सकता है।
मिल रहा। उनकी पीड़ा पर अब तक केवल आश्वासनों की मरहम ही लगाई गई।1 अब शिक्षा मंत्री ने एक और आश्वासन दिया है कि इनके मामले की वह स्वयं जांच करेंगी। निजी कंपनियों ने शिक्षा विभाग के साथ हुए समझौते की शर्तो का उल्लंघन किया पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अतिथि अध्यापकों को लगातार आश्वासनों की भूल-भुलैया में उलझाया जा रहा है। हजारों अध्यापक और उनके परिवार अनिश्चय की स्थिति में जी रहे हैं पर कोई स्पष्ट राह नहीं दिखाई दे रही। गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में निश्शुल्क दाखिले के लिए कोरे आश्वासन मिल रहे हैं। सरकार को अपनी कार्यशैली बदलनी चाहिए। हर विभाग, पद के बारे में स्थिति स्पष्ट रखी जाए और कार्यशैली में पूर्ण पारदर्शिता बरती जानी चाहिए। यह नहीं भूलना चाहिए कि बार-बार वादे से मुकरने या फिर किसी निर्णय, घोषणा पर टरकाए जाने से संस्था, निकाय या सरकार की साख पर धब्बा लग सकता है।
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