अतिथि अध्यापकों को हर बार नए मुलम्मे के साथ आश्वासन मिल रहे हैं। अब तक 15 बार मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, मुख्य या प्रधान सचिव उनकी व्यथा सुन चुके और हिम्मत बनाए रखने की सीख के साथ इस मामले में सरकार के पर्याप्त गंभीर होने का दिलासा दिया जाता रहा। हर बार पिछले वादों में इजाफा करके वर्षो से बात अधर में लटकाई जा रही है। स्पष्ट क्यों नहीं किया जा रहा कि सरकार के पास गेस्ट टीचर के मुद्दे का स्थायी समाधान है अथवा नहीं। कोर्ट के फैसले के आलोक में उसने नियमितीकरण के लिए क्या योजना बनाई। किश्तों में आश्वासन देने का क्या यह अर्थ लगाया जाए कि सरकार स्वयं आश्वस्त नहीं कि उसकी रणनीति व्यावहारिक और तर्कसंगत है। इसीलिए एक बार में गेस्ट टीचरों को अपनी स्थिति स्पष्ट करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही। इसी सिलसिले में अब मुख्यमंत्री से ताजा मुलाकात से अतिथि अध्यापकों को नई उम्मीद जगी है। उन्हें भरोसा दिलाया गया है कि किसी भी स्थिति में नौकरी नहीं
जाएगी, न ही नियमित अध्यापक आने की स्थिति में सर्विस ब्रेक होगी तथा वेतन भी नहीं काटा जाएगा। इसके अलावा तबादले आदि में राहत देने की बात भी सरकार की ओर से कही गई लेकिन वेतन वृद्धि पर फिर टालमटोल कर दिया गया। 1 पंद्रह हजार गेस्ट टीचरों और उनके परिवारों की व्यथा को गंभीरता से समझने की सरकार को कोशिश करनी चाहिए। भविष्य अनिश्चित होने की आशंका से वर्तमान भी अव्यवस्थित हो चुका है। समय रहते समाधान नहीं हुआ तो सामाजिक विषमताओं के उदय होने, शासन-प्रशासन की साख पर बट्टा लगने और शिक्षा विभाग के अनिश्चितता के भंवर में फंसने की आशंका पैदा हो सकती है। अतिथि अध्यापकों को उनके भविष्य और सरकार की कार्ययोजना के बारे में दो टूक बताया जाना चाहिए। यदि कोई अड़चन है तो उसे दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं? यह भी स्पष्ट हो कि अदालती आदेशों का उल्लंघन किए बिना किस तरह अतिथि अध्यापकों को समायोजित किया जाएगा? राज्य में अध्यापकों के 25 हजार से अधिक पद रिक्त हैं पर एक अहम पहलू को सरकार संजीदगी से महसूस नहीं कर रही कि नियमित अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया आरंभ होने के बाद गेस्ट टीचरों की बेचैनी बढ़ी है। उन्हें ठोस कार्ययोजना पर आधारित आश्वासन की जरूरत है। वर्षो से अनिश्चय की पीड़ा ङोलने वाले अतिथि अध्यापकों के अच्छे दिन कब आएंगे? सरकार को जल्द बताना चाहिए।
जाएगी, न ही नियमित अध्यापक आने की स्थिति में सर्विस ब्रेक होगी तथा वेतन भी नहीं काटा जाएगा। इसके अलावा तबादले आदि में राहत देने की बात भी सरकार की ओर से कही गई लेकिन वेतन वृद्धि पर फिर टालमटोल कर दिया गया। 1 पंद्रह हजार गेस्ट टीचरों और उनके परिवारों की व्यथा को गंभीरता से समझने की सरकार को कोशिश करनी चाहिए। भविष्य अनिश्चित होने की आशंका से वर्तमान भी अव्यवस्थित हो चुका है। समय रहते समाधान नहीं हुआ तो सामाजिक विषमताओं के उदय होने, शासन-प्रशासन की साख पर बट्टा लगने और शिक्षा विभाग के अनिश्चितता के भंवर में फंसने की आशंका पैदा हो सकती है। अतिथि अध्यापकों को उनके भविष्य और सरकार की कार्ययोजना के बारे में दो टूक बताया जाना चाहिए। यदि कोई अड़चन है तो उसे दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं? यह भी स्पष्ट हो कि अदालती आदेशों का उल्लंघन किए बिना किस तरह अतिथि अध्यापकों को समायोजित किया जाएगा? राज्य में अध्यापकों के 25 हजार से अधिक पद रिक्त हैं पर एक अहम पहलू को सरकार संजीदगी से महसूस नहीं कर रही कि नियमित अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया आरंभ होने के बाद गेस्ट टीचरों की बेचैनी बढ़ी है। उन्हें ठोस कार्ययोजना पर आधारित आश्वासन की जरूरत है। वर्षो से अनिश्चय की पीड़ा ङोलने वाले अतिथि अध्यापकों के अच्छे दिन कब आएंगे? सरकार को जल्द बताना चाहिए।
No comments:
Post a Comment