नियम 134 ए के तहत निजी स्कूलों में गरीब बच्चों का निश्शुल्क दाखिला मृग मरीचिका बन कर रह गया है। आश्वासनों, वायदों की भरमार के बीच उन्हें सपने दिखाए गए, प्रक्रिया चालू करने का ढिंढ़ोरा पीटा गया। यह जताने की कोशिश की गई कि तत्परता में शिक्षा विभाग का कोई सानी नहीं। तय अवधि समाप्त हो गई और अब वास्तविकता सामने है। पानीपत में एक भी गरीब बच्चे को निजी स्कूल में दाखिला नहीं दिया गया। अन्य जिलों में भी स्थिति उत्साहजनक नहीं है। ड्रॅा की सूची लिए अभिभावक चक्कर लगा कर थक गए लेकिन सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती स्कूल संचालकों की शर्ते उनकी सांस फुला रही हैं। भ्रम का घेरा लगातार गहरा रहा है। तीसरी से बारहवीं कक्षाओं में एडमिशन के लिए आनन-फानन में तय हो गया कि प्रवेश परीक्षा होगी, फिर विभाग और मंत्री को गलती का अहसास हुआ और परीक्षा की शर्त रद करनी पड़ी। अब शिक्षा महानिदेशक को बदल दिया गया। बारहवीं तक कक्षाओं के लिए अभी ड्रॉ की तिथियां तय नहीं हुई।
सरकारी आदेशों को मानने से स्कूल संचालक साफ इनकार कर रहे हैं। तमाम हालात को देख कर स्पष्ट हो गया है कि नियम 134 ए पर सरकार व शिक्षा विभाग के दावों और हकीकत में जमीन-आसमान का अंतर है। विरोधाभास के कारण पढ़ाई का नुकसान हो रहा है।1 जिला शिक्षा अधिकार नहीं बता पा रहे कि किस स्कूल में कितने दाखिले हुए और दाखिले से वंचित बच्चों के लिए क्या वैकल्पिक योजना है? शिक्षा विभाग को नियमों, उपनियमों व क्रियान्वयन के अवरोध हटाने के काम को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। गरीब बच्चों के लिए वृहद लक्ष्य सरकार ने स्वयं निर्धारित किया और शिक्षा विभाग के सामने इसे पूरा करके पूरे देश में अनुकरणीय उदाहरण पेश करने का सुनहरा अवसर था लेकिन वह चूक गया। इसके लिए कई कारण गिनाए जा सकते हैं। गलतियों की पुनरावृत्ति पर अंकुश लगाया जाए तो अवसर फिर हाथ में आ सकता है। हर जिले में सक्षम अधिकारी की जिम्मेदारी, जवाबदेही तय की जाए और हाल के दिनों में वह केवल निजी स्कूलों में निश्शुल्क दाखिले का ही काम देखे, नियम और विभाग के निर्देशों का पालन न करने वाले स्कूल संचालकों के लिए दंड की संस्तुति करे जिस पर शीर्ष स्तर पर शीघ्र कार्रवाई सुनिश्चित हो। गरीब बच्चों को निश्शुल्क दाखिला ऐसा मिशन है जो एकांगी प्रयासों से पूरा नहीं हो सकता, इसके लिए समग्र, सामूहिक स्तर पर मुहिम जरूरी है।
सरकारी आदेशों को मानने से स्कूल संचालक साफ इनकार कर रहे हैं। तमाम हालात को देख कर स्पष्ट हो गया है कि नियम 134 ए पर सरकार व शिक्षा विभाग के दावों और हकीकत में जमीन-आसमान का अंतर है। विरोधाभास के कारण पढ़ाई का नुकसान हो रहा है।1 जिला शिक्षा अधिकार नहीं बता पा रहे कि किस स्कूल में कितने दाखिले हुए और दाखिले से वंचित बच्चों के लिए क्या वैकल्पिक योजना है? शिक्षा विभाग को नियमों, उपनियमों व क्रियान्वयन के अवरोध हटाने के काम को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। गरीब बच्चों के लिए वृहद लक्ष्य सरकार ने स्वयं निर्धारित किया और शिक्षा विभाग के सामने इसे पूरा करके पूरे देश में अनुकरणीय उदाहरण पेश करने का सुनहरा अवसर था लेकिन वह चूक गया। इसके लिए कई कारण गिनाए जा सकते हैं। गलतियों की पुनरावृत्ति पर अंकुश लगाया जाए तो अवसर फिर हाथ में आ सकता है। हर जिले में सक्षम अधिकारी की जिम्मेदारी, जवाबदेही तय की जाए और हाल के दिनों में वह केवल निजी स्कूलों में निश्शुल्क दाखिले का ही काम देखे, नियम और विभाग के निर्देशों का पालन न करने वाले स्कूल संचालकों के लिए दंड की संस्तुति करे जिस पर शीर्ष स्तर पर शीघ्र कार्रवाई सुनिश्चित हो। गरीब बच्चों को निश्शुल्क दाखिला ऐसा मिशन है जो एकांगी प्रयासों से पूरा नहीं हो सकता, इसके लिए समग्र, सामूहिक स्तर पर मुहिम जरूरी है।
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