•अमर उजाला ब्यूरो
चंडीगढ़। आईटीआई में कांट्रैक्ट पर काम कर रहे
258 इंस्ट्रक्टरों के साथ हरियाणा सरकार अन्याय
कर रही है। यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने
हरियाणा सरकार को फटकार लगाते हुए की है।
जस्टिस एसएस निज्जर और जस्टिस एके
सीकरी की खंडपीठ ने गत 24 फरवरी को आपराधिक
अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि 258
इंस्ट्रक्टरों के बारे में 21 जनवरी, 2013
को इसी अदालत ने अपने आदेश में
लिखा था कि हरियाणा सरकार के आईटीआई विभाग के
सचिव ने कहा था कि राज्य सरकार उन 258
इंस्ट्रक्टरों को मानवता के नाते विभाग में
खाली पदों पर समायोजित करने के लिए तैयार है
जो विभाग की योग्यता पूरी करते हों, अगर अदालत
इस संबंध में कोई दिशा-निर्देश जारी करे।
सचिव के बाद खंडपीठ ने
टिप्पणी की थी कि उनकी राय में यह न्याय के हित में
होगा अगर योग्यता पूरी करने वाले
याचियों को समायोजित कर लिया जाए। इसके लिए
प्रदेश सरकार को तीन महीने का समय दिया जाता है।
अब 24 फरवरी को सुनवाई के दौरान याची ने अदालत
में कहा कि सरकार ने वादा करने के बावजूद 258
इंस्ट्रक्टरों को रेगुलर करने के लिए अंतिम निर्णय नहीं किया है। प्रदेश सरकार की तरफ से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता मंजीत सिंह दलाल ने अदालत से कहा कि वादीगणों को रेगुलर नियुक्ति देना संभव नहीं है। वे कांट्रैक्ट पर ही सेवा दे सकते हैं। इस पर खंडपीठ ने कहा कि प्रारंभिक तौर पर वह अतिरिक्त महाधिवक्ता की दलील से सहमत नहीं है। चूंकि वादीगण सभी योग्यताएं पूरी करते हैं, उन्हें विभाग में काम करते हुए लंबा समय हो गया है। प्रारंभिक तौर पर ऐसा लगता है कि राज्य सरकार ने उनके साथ अन्याय किया है। इस टिप्पणी पर दलाल ने आग्रह किया कि उन्हें दो सप्ताह का समय दिया जाए ताकि निर्देश ले लिए जाएं और शपथ पत्र दायर हो सके। अदालत ने दो सप्ताह का समय दे दिया। मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद तय की। याची का तर्कचयन सही, पद स्थायी, लेकिन सरकार रेगुलर नहीं कर रही
इंस्ट्रक्टरों को रेगुलर करने के लिए अंतिम निर्णय नहीं किया है। प्रदेश सरकार की तरफ से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता मंजीत सिंह दलाल ने अदालत से कहा कि वादीगणों को रेगुलर नियुक्ति देना संभव नहीं है। वे कांट्रैक्ट पर ही सेवा दे सकते हैं। इस पर खंडपीठ ने कहा कि प्रारंभिक तौर पर वह अतिरिक्त महाधिवक्ता की दलील से सहमत नहीं है। चूंकि वादीगण सभी योग्यताएं पूरी करते हैं, उन्हें विभाग में काम करते हुए लंबा समय हो गया है। प्रारंभिक तौर पर ऐसा लगता है कि राज्य सरकार ने उनके साथ अन्याय किया है। इस टिप्पणी पर दलाल ने आग्रह किया कि उन्हें दो सप्ताह का समय दिया जाए ताकि निर्देश ले लिए जाएं और शपथ पत्र दायर हो सके। अदालत ने दो सप्ताह का समय दे दिया। मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद तय की। याची का तर्कचयन सही, पद स्थायी, लेकिन सरकार रेगुलर नहीं कर रही
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