माता मनसा
माता मनसा देवी मुरादो को पूरा करने वाली देवी है । कहते हैं कि मनसा देवी का जन्म संत कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है । मनसा देवी को भी सिद्ध पीठो में गिना जाता है ।
मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री भी माना जाता है । माता मनसा देवी के साथ एक बहुत ही प्रचलित कथा जुडी हुयी है जिसका उल्लेख मैं यहाँ करना चाहूंगा - और इस कथा को हमारे बहुत से साधक लोग एक पुरानी फ़िल्म में भी देख चुके हैं - याद करवाने के लिए मैं उस फ़िल्म का दूँ " नाग पंचमी " ।
सती बेहुला चम्पक नगरी में चन्द्रधर नामक एक धनी वैश्य था
। वह परम शिव-भक्त था - किन्तु मनसा देवी से उसका बड़ा विरोध था ।
इस विरोध का मुख्य कारन था कि मनसा देवी चंद्रधर से अपनी खुद कि पूजा करवाना चाहती थीं क्योंकि चंद्रधर के बारे में मशहूर था कि वह भगवान शिव का अनन्य भक्त है और वह उनके अलावा किसी और का नाम तक नहीं लेता - इसी विरोध के कारण मनसा देवी ने चन्द्रधर के छह पुत्रों को विषधर नागों से डंसवा कर मरवा डाला ।
सातवें पुत्र लक्ष्मीचंद्र का विवाह उज्जयिनी के धार्मिक साधु नामक वैश्य की परम सुन्दरी साध्वी कन्या बेहुला के साथ हुआ। लक्ष्मीचंद्र की कुण्डली देखकर ज्योतिषियों ने बता दिया था कि विवाह की प्रथम रात्रि में ही सांप के काटने से इसकी मृत्यु हो सकती है ।
चन्द्रधर ने लोहे का ऐसा मजबूत घर बनवाया, जिसमें वायु भी प्रवेश न कर सके, मगर मनसा देवी ने भवन-निर्माता से छोटा-सा छेद छोड़ देने के लिए कह दिया ।
विवाह-रात्रि को नागिन ने लक्ष्मीचंद्र को डंस लिया और वह मर गया। सारे घर में शोर मच गया। तब उसकी पत्नी बेहुला ने केले के पौधे की नाव बनवाई और पति के शव को लेकर, उसमें बैठ गई। उसने लाल साड़ी पहन रखी थी और सिन्दूर लगा रखा था । नदी की लहरें उस शव को बहुत दूर ले गईं ।
वह अपने पति को पुन: जिन्दा करने पर तुली हुई थी । बहुत दिनों तक उसने कुछ नहीं खाया, जिससे उसका शरीर सूख गया था । लक्ष्मीचंद्र के शरीर से दुर्गन्ध भी आने लगी थी । उसके सारे शरीर में कीड़े पड़ गए थे । मात्र उसका कंकाल ही शेष रह गया था ।
बेहुला नाव को किनारे की ओर ले चली ।
उसने वहां एक धोबिन के मुख से तेज टपकते देखा ।
उसके कठोर तप को देखकर ही मनसा देवी ने उसे वहां भेजा था ।
उसने बेहुला से कहा :-
"तुम मेरे साथ देवलोक में चल कर अपने नृत्य से महादेव को रिझा दो तो तुम्हारे पति पुन: जिन्दा हो जाएंगे।"
बेहुला ने उसकी सलाह मान ली। वह उसके साथ चल पड़ी पति की अस्थियां उसके वक्षस्थल से चिपकी थीं। वह अपने पति की स्मृति से उन्मत्त होकर नृत्य करने लगी। सारा देव समुदाय द्रवित हो गया। मनसा देवी भी द्रवित हो गईं। लक्ष्मीचंद्र जीवित हो गया और इसके साथ ही बेहुला का नाम अमर हो गया।
माता मनसा देवी कि एक अन्य कथा :-
मुग़ल सम्राट अकबर के समय की बात हैं कि चंडीगढ़ के पास मनीमाजरा नामक स्थान हैं! यह जागीर एक राजपूत जागीरदार के अधीन थी ! सम्राट कृषकों से लगान के रूप में अन्न वसूल करवाता था ! एक बार प्राकृतिक प्रकोप वश फसल बहुत कम हुई जिससे जागीरदार वसूली करने में असमर्थ रहे !
इसलिए उन्होंने अकबर से लगान माफ़ करने की प्रार्थना की !
यद्यपि बादशाह अकबर काफी अच्छा शासक था लेकिन उसने जागीरदारों की कोई बात नहीं मानी व् क्रोधित होकर उन सब जागीरदारों को जेल में डालने का हुक्म दे दिया ! इस बात की खबर पूरे गाँव में फ़ैल गई !
माँ का भक्त गरीबदास यह सुनकर बहुत दुखी हुआ ! उसने दुर्गा माँ से प्रार्थना कि माता प्रसन्न होकर हमें कष्ट से उबारो व् जागीरदारों को मुक्त करवा दो !
भक्त की प्रार्थना से प्रसन्न हो माता बोली तू जो चाहता हैं वैसा ही आशीर्वाद देती हूँ !
कुछ समय बाद सब जागीरदार अपने २ घरों को लौटेंगे !
गरीबदास माँ के चरणों में गिर गया और बोला - माता तेरा खेल निराला हैं !
तू सर्व शक्तिमान हैं !
आप अपने भक्तों की सदा रक्षा करती हैं ! कुछ समय बाद सभी जागीरदार प्रसन्न चित्त अपने २ घर लौट आये ! माँ की महिमा उन सबको मालूम हो गई ! सबने मिलकर वहाँ एक मंदिर बनवा दिया जो की मनसा देवी के अर्थात इच्छा पूर्ण करने वाली देवी के नाम से विख्यात हो गया !
एक अन्य दंत कथा के अनुसार :-
मनसा देवी का नाम महंत मंशा नाथ के नाम पर पड़ा बताया जाता है। महंत मंशा नाथ का धूना आज भी मनसा देवी की सीढि़यों के शुरू में बाई ओर देखा जा सकता है।
श्री माता मनसा देवी के सिद्घ शक्तिपीठ पर बने मंदिर का निर्माण मनीमाजरा ( चंडीगढ़ - पंचकुला - हरयाणा ) के राजा गोपाल सिंह ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर लगभग पौने दो सौ वर्ष पूर्व चार वर्षो में अपनी देखरेख में सन 1815 ईस्वी में पूर्ण करवाया था।
पंचकूला हरियाणा के जिला पंचकूला में ऐतिहासिक नगर मनीमाजरा के निकट शिवालिक पर्वत मालाओं की गोद में सिंधुवन के अतिंम छोर पर प्राकृतिक छटाओं से आच्छादित एकदम मनोरम एवं शांति वातावरण में स्थित है-सतयुगी सिद्घ माता मनसा देवी का मंदिर।
मूर्ति के आगे तीन पिंडियां है, जिन्हे मां का रूप ही माना जाता है। ये तीनों पीडिंया महालक्ष्मी, मनसा देवी तथा सरस्वती देवी के नाम से जानी जाती है।
एक अन्य दंत कथा के अनुसार :-
कहते हैं कि एक बार पटियाला महाराजा माता मनसा देवी मंदिर में शीश नवाने आए, लेकिन मंदिर के द्वार बंद हो चुके थे। पटियाला महाराजा ने द्वार खुलवाने चाहे, परतु द्वार नहीं खुले, तो महाराजा ने प्रण लिया कि मैं मा के एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाने के बाद अब माता मनसा देवी मंदिर में आऊंगा और उन्होंने इस प्रण को पूरा किया।
माता मनसा देवी के बारे में कुछ तथ्य :-
१. मनसा देवी का मंदिर हरिद्वार में हरकी पैड़ी के पास गंगा किनारे पहाड़ी पर स्थित आस्था का केन्द्र है।
२. मनसा देवी का उल्लेख पुराणों में है। 'मनसा' शब्द का प्रचलित अर्थ इच्छा है। कहा जाता है कि माँ मनसा सच्चे मन वाले हर श्रद्धालु की इच्छा को पूरा करती हैं।
३. देवी का जन्म संत कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है। उन्हें जरत्कारु मुनि की पत्नी और आस्तीक की माता तथा नाग राजा वासुकी की बहन भी माना जाता है।
४. हरिद्वार के चंडी देवी और माया देवी के साथ मनसा देवी को भी सिद्ध पीठों में प्रमुख माना जाता है।
५. मनसा ने भगवान शंकर की कठोर तपस्या करके वेदों का अध्ययन किया और कृष्ण मंत्र प्राप्त किया, जो कल्पतरु मंत्र कहलाता है।
६. देवी ने कई युगों तक पुष्कर में तप किया। भगवान कृष्ण ने दर्शन देकर वरदान दिया कि तीनों लोकों में तुम्हारी पूजा होगी।
७. देवी की पूजा गंगा दशहरा के दिन बंगाल में भी की जाती है।
८. कृष्णपक्ष पंचमी (नाग पंचमी ) को भी देवी पूजी जाती हैं। मान्यता है कि इस दिन घर के आँगन में नागफनी की शाखा पर मनसा देवी की पूजा करने से विष का भय नहीं रह जाता।
९. मनसा देवी की पूजा के बाद ही नागों की पूजा होती है।
१०. कहते है कि मां मनसा देवी के मंदिर में यदि कोई भक्त लगातार चालीस दिनों तक दीपक जलाए और सच्चे मन से पूजा-अर्चना कर मां के दरबार में अपनी अर्जी लगाता है तो उसे वांछित फल अवश्य मिलता है।
११. इंद्रासणी मनसा देवी मंदिर, कन्दली पट्टी गाँव में स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। किंवदंतियों के अनुसार माना जाता है कि यह एक प्राचीन मंदिर है जो कि आदि गुरु शंकराचार्य के ज़माने में निर्मित किया गया था। इंद्रासणी मनसा देवी मंदिर नागों की देवी मनसा माता को समर्पित है। रुद्रप्रयाग शहर से 6 किमी की दूरी पर स्थित यह मंदिर अनोखी वास्तुकला शैली का प्रदर्शन करता है। महाकाव्य स्कन्द पुराण, देवी भागवत और केदारखंड के अनुसार इंद्रासणी देवी को ‘कश्यप’ की मानसी कन्या के रूप में जाना जाता है। मनसा देवी को वैष्णवी, शिवी और विषहरी के नाम से भी जाना जाता है
१२. एक लोककथा से पता चलता है कि देवी सांप के काटने से बीमार हुए व्यक्तियों को ठीक कर सकती है।
१३. वह साँपों के कुल की अधिष्ठात्री मानी गई है।
१४. मन से उत्पन्न।
प्रमुख मंदिर क्षेत्र :-
१. हरिद्वार
२. हरियाणा-पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ से लगभग आठ किलोमीटर दूर मनीमाजरा की शिवालिक शृंखलाओं पर स्थित मनसा माता का सिद्ध स्थान है जिसकी गणना 51 शक्तिपीठों में की जाती है।
माता मनसा देवी मुरादो को पूरा करने वाली देवी है । कहते हैं कि मनसा देवी का जन्म संत कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है । मनसा देवी को भी सिद्ध पीठो में गिना जाता है ।
मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री भी माना जाता है । माता मनसा देवी के साथ एक बहुत ही प्रचलित कथा जुडी हुयी है जिसका उल्लेख मैं यहाँ करना चाहूंगा - और इस कथा को हमारे बहुत से साधक लोग एक पुरानी फ़िल्म में भी देख चुके हैं - याद करवाने के लिए मैं उस फ़िल्म का दूँ " नाग पंचमी " ।
सती बेहुला चम्पक नगरी में चन्द्रधर नामक एक धनी वैश्य था
। वह परम शिव-भक्त था - किन्तु मनसा देवी से उसका बड़ा विरोध था ।
इस विरोध का मुख्य कारन था कि मनसा देवी चंद्रधर से अपनी खुद कि पूजा करवाना चाहती थीं क्योंकि चंद्रधर के बारे में मशहूर था कि वह भगवान शिव का अनन्य भक्त है और वह उनके अलावा किसी और का नाम तक नहीं लेता - इसी विरोध के कारण मनसा देवी ने चन्द्रधर के छह पुत्रों को विषधर नागों से डंसवा कर मरवा डाला ।
सातवें पुत्र लक्ष्मीचंद्र का विवाह उज्जयिनी के धार्मिक साधु नामक वैश्य की परम सुन्दरी साध्वी कन्या बेहुला के साथ हुआ। लक्ष्मीचंद्र की कुण्डली देखकर ज्योतिषियों ने बता दिया था कि विवाह की प्रथम रात्रि में ही सांप के काटने से इसकी मृत्यु हो सकती है ।
चन्द्रधर ने लोहे का ऐसा मजबूत घर बनवाया, जिसमें वायु भी प्रवेश न कर सके, मगर मनसा देवी ने भवन-निर्माता से छोटा-सा छेद छोड़ देने के लिए कह दिया ।
विवाह-रात्रि को नागिन ने लक्ष्मीचंद्र को डंस लिया और वह मर गया। सारे घर में शोर मच गया। तब उसकी पत्नी बेहुला ने केले के पौधे की नाव बनवाई और पति के शव को लेकर, उसमें बैठ गई। उसने लाल साड़ी पहन रखी थी और सिन्दूर लगा रखा था । नदी की लहरें उस शव को बहुत दूर ले गईं ।
वह अपने पति को पुन: जिन्दा करने पर तुली हुई थी । बहुत दिनों तक उसने कुछ नहीं खाया, जिससे उसका शरीर सूख गया था । लक्ष्मीचंद्र के शरीर से दुर्गन्ध भी आने लगी थी । उसके सारे शरीर में कीड़े पड़ गए थे । मात्र उसका कंकाल ही शेष रह गया था ।
बेहुला नाव को किनारे की ओर ले चली ।
उसने वहां एक धोबिन के मुख से तेज टपकते देखा ।
उसके कठोर तप को देखकर ही मनसा देवी ने उसे वहां भेजा था ।
उसने बेहुला से कहा :-
"तुम मेरे साथ देवलोक में चल कर अपने नृत्य से महादेव को रिझा दो तो तुम्हारे पति पुन: जिन्दा हो जाएंगे।"
बेहुला ने उसकी सलाह मान ली। वह उसके साथ चल पड़ी पति की अस्थियां उसके वक्षस्थल से चिपकी थीं। वह अपने पति की स्मृति से उन्मत्त होकर नृत्य करने लगी। सारा देव समुदाय द्रवित हो गया। मनसा देवी भी द्रवित हो गईं। लक्ष्मीचंद्र जीवित हो गया और इसके साथ ही बेहुला का नाम अमर हो गया।
माता मनसा देवी कि एक अन्य कथा :-
मुग़ल सम्राट अकबर के समय की बात हैं कि चंडीगढ़ के पास मनीमाजरा नामक स्थान हैं! यह जागीर एक राजपूत जागीरदार के अधीन थी ! सम्राट कृषकों से लगान के रूप में अन्न वसूल करवाता था ! एक बार प्राकृतिक प्रकोप वश फसल बहुत कम हुई जिससे जागीरदार वसूली करने में असमर्थ रहे !
इसलिए उन्होंने अकबर से लगान माफ़ करने की प्रार्थना की !
यद्यपि बादशाह अकबर काफी अच्छा शासक था लेकिन उसने जागीरदारों की कोई बात नहीं मानी व् क्रोधित होकर उन सब जागीरदारों को जेल में डालने का हुक्म दे दिया ! इस बात की खबर पूरे गाँव में फ़ैल गई !
माँ का भक्त गरीबदास यह सुनकर बहुत दुखी हुआ ! उसने दुर्गा माँ से प्रार्थना कि माता प्रसन्न होकर हमें कष्ट से उबारो व् जागीरदारों को मुक्त करवा दो !
भक्त की प्रार्थना से प्रसन्न हो माता बोली तू जो चाहता हैं वैसा ही आशीर्वाद देती हूँ !
कुछ समय बाद सब जागीरदार अपने २ घरों को लौटेंगे !
गरीबदास माँ के चरणों में गिर गया और बोला - माता तेरा खेल निराला हैं !
तू सर्व शक्तिमान हैं !
आप अपने भक्तों की सदा रक्षा करती हैं ! कुछ समय बाद सभी जागीरदार प्रसन्न चित्त अपने २ घर लौट आये ! माँ की महिमा उन सबको मालूम हो गई ! सबने मिलकर वहाँ एक मंदिर बनवा दिया जो की मनसा देवी के अर्थात इच्छा पूर्ण करने वाली देवी के नाम से विख्यात हो गया !
एक अन्य दंत कथा के अनुसार :-
मनसा देवी का नाम महंत मंशा नाथ के नाम पर पड़ा बताया जाता है। महंत मंशा नाथ का धूना आज भी मनसा देवी की सीढि़यों के शुरू में बाई ओर देखा जा सकता है।
श्री माता मनसा देवी के सिद्घ शक्तिपीठ पर बने मंदिर का निर्माण मनीमाजरा ( चंडीगढ़ - पंचकुला - हरयाणा ) के राजा गोपाल सिंह ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर लगभग पौने दो सौ वर्ष पूर्व चार वर्षो में अपनी देखरेख में सन 1815 ईस्वी में पूर्ण करवाया था।
पंचकूला हरियाणा के जिला पंचकूला में ऐतिहासिक नगर मनीमाजरा के निकट शिवालिक पर्वत मालाओं की गोद में सिंधुवन के अतिंम छोर पर प्राकृतिक छटाओं से आच्छादित एकदम मनोरम एवं शांति वातावरण में स्थित है-सतयुगी सिद्घ माता मनसा देवी का मंदिर।
मूर्ति के आगे तीन पिंडियां है, जिन्हे मां का रूप ही माना जाता है। ये तीनों पीडिंया महालक्ष्मी, मनसा देवी तथा सरस्वती देवी के नाम से जानी जाती है।
एक अन्य दंत कथा के अनुसार :-
कहते हैं कि एक बार पटियाला महाराजा माता मनसा देवी मंदिर में शीश नवाने आए, लेकिन मंदिर के द्वार बंद हो चुके थे। पटियाला महाराजा ने द्वार खुलवाने चाहे, परतु द्वार नहीं खुले, तो महाराजा ने प्रण लिया कि मैं मा के एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाने के बाद अब माता मनसा देवी मंदिर में आऊंगा और उन्होंने इस प्रण को पूरा किया।
माता मनसा देवी के बारे में कुछ तथ्य :-
१. मनसा देवी का मंदिर हरिद्वार में हरकी पैड़ी के पास गंगा किनारे पहाड़ी पर स्थित आस्था का केन्द्र है।
२. मनसा देवी का उल्लेख पुराणों में है। 'मनसा' शब्द का प्रचलित अर्थ इच्छा है। कहा जाता है कि माँ मनसा सच्चे मन वाले हर श्रद्धालु की इच्छा को पूरा करती हैं।
३. देवी का जन्म संत कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है। उन्हें जरत्कारु मुनि की पत्नी और आस्तीक की माता तथा नाग राजा वासुकी की बहन भी माना जाता है।
४. हरिद्वार के चंडी देवी और माया देवी के साथ मनसा देवी को भी सिद्ध पीठों में प्रमुख माना जाता है।
५. मनसा ने भगवान शंकर की कठोर तपस्या करके वेदों का अध्ययन किया और कृष्ण मंत्र प्राप्त किया, जो कल्पतरु मंत्र कहलाता है।
६. देवी ने कई युगों तक पुष्कर में तप किया। भगवान कृष्ण ने दर्शन देकर वरदान दिया कि तीनों लोकों में तुम्हारी पूजा होगी।
७. देवी की पूजा गंगा दशहरा के दिन बंगाल में भी की जाती है।
८. कृष्णपक्ष पंचमी (नाग पंचमी ) को भी देवी पूजी जाती हैं। मान्यता है कि इस दिन घर के आँगन में नागफनी की शाखा पर मनसा देवी की पूजा करने से विष का भय नहीं रह जाता।
९. मनसा देवी की पूजा के बाद ही नागों की पूजा होती है।
१०. कहते है कि मां मनसा देवी के मंदिर में यदि कोई भक्त लगातार चालीस दिनों तक दीपक जलाए और सच्चे मन से पूजा-अर्चना कर मां के दरबार में अपनी अर्जी लगाता है तो उसे वांछित फल अवश्य मिलता है।
११. इंद्रासणी मनसा देवी मंदिर, कन्दली पट्टी गाँव में स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। किंवदंतियों के अनुसार माना जाता है कि यह एक प्राचीन मंदिर है जो कि आदि गुरु शंकराचार्य के ज़माने में निर्मित किया गया था। इंद्रासणी मनसा देवी मंदिर नागों की देवी मनसा माता को समर्पित है। रुद्रप्रयाग शहर से 6 किमी की दूरी पर स्थित यह मंदिर अनोखी वास्तुकला शैली का प्रदर्शन करता है। महाकाव्य स्कन्द पुराण, देवी भागवत और केदारखंड के अनुसार इंद्रासणी देवी को ‘कश्यप’ की मानसी कन्या के रूप में जाना जाता है। मनसा देवी को वैष्णवी, शिवी और विषहरी के नाम से भी जाना जाता है
१२. एक लोककथा से पता चलता है कि देवी सांप के काटने से बीमार हुए व्यक्तियों को ठीक कर सकती है।
१३. वह साँपों के कुल की अधिष्ठात्री मानी गई है।
१४. मन से उत्पन्न।
प्रमुख मंदिर क्षेत्र :-
१. हरिद्वार
२. हरियाणा-पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ से लगभग आठ किलोमीटर दूर मनीमाजरा की शिवालिक शृंखलाओं पर स्थित मनसा माता का सिद्ध स्थान है जिसकी गणना 51 शक्तिपीठों में की जाती है।
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