उच्चत्तर शिक्षा विभाग की लापरवाही के कारण प्राध्यापकों को वेतन न मिलने से उनके घरों में खाने के लाले पड़े हुए हैं। प्राध्यापकों को जुलाई, 2013 से विभाग की तरफ से वेतन नहीं मिल पाया है।
जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने 1993 में प्रदेश के विभिन्न महाविद्यालयों में लगे तदर्थ प्राध्यापकों को 18 साल के बाद उनकी सेवाओं को देखते हुए अधिसूचना जारी कर जनवरी 2012 में नियमित किया था। इसका लाभ प्रदेश के 42 तदर्थ प्राध्यापकों को मिला। मगर उच्चत्तर शिक्षा विभाग की लापरवाही के कारण पूरे हरियाणा में कार्यरत इन प्राध्यापकों को जुलाई, 2013 से वेतन नहीं मिला है। इनमें राजकीय महाविद्यालय हिसार, सिरसा व रतिया के प्राध्यापक शामिल है। दिसंबर 2013 में प्रदेश के कुछ महाविद्यालयों के प्राध्यापकों को दीपावली पर तीन माह का वेतन दे दिया गया।
इसके बाद से अब तक पूरे प्रदेश के तदर्थ से नियमित हुए
प्राध्यापकों को वेतन नहीं मिला है। वेतन न देने के बाद भी उच्च शिक्षा विभाग की ओर से इन प्राध्यापकों से सेवाएं नियमित रूप से ली जा रही है। यहीं नहीं एक प्राध्यापक जयभगवान की मौत हो गई व मृतक का परिवार वेतन या पेंशन न मिल पाने के कारण काफी परेशानी के दौर से गुजर रहा है। प्रदेश सरकार ने इन तदर्थ प्राध्यापकों की नियुक्ति नई पेंशन स्कीम 2006 के तहत की। इसके कारण उच्चत्तर शिक्षा विभाग ने जुलाई 2013 में प्राण (परमानेंट अकाउंट नंबर) खुलवाने का आदेश इन प्राध्यापकों को दिया गया। प्राध्यापकों ने इसे लेकर अपना विरोध मुख्यमंत्री के समक्ष पेश किया। मुख्यमंत्री ने तदर्थ प्राध्यापकों की समस्या के निवारण के लिए मंत्री रणदीप सिंह सुरजेवाला की देखरेख में एक कमेटी का गठन किया। प्राध्यापकों ने उन्हें बताया कि हम 1993 से सरकारी सेवाएं दे रहे हैं। 1996 में प्रदेश सरकार ने सभी तदर्थ प्राध्यापकों को नियमित करने का नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया था, मगर बाद में तत्कालीन बंसीलाल सरकार ने इस नोटिफिकेशन को वापस ले लिया। इसके बाद सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार ने 2012 में नियमित करने का कार्य किया था। इन प्राध्यापकों ने सरकार से मांग की थी कि उन्हें प्राण स्कीम के तहत न लेकर जीपीएफ स्कीम (पुरानी पेंशन स्कीम)के तहत लिया जाए।
प्राध्यापकों को वेतन नहीं मिला है। वेतन न देने के बाद भी उच्च शिक्षा विभाग की ओर से इन प्राध्यापकों से सेवाएं नियमित रूप से ली जा रही है। यहीं नहीं एक प्राध्यापक जयभगवान की मौत हो गई व मृतक का परिवार वेतन या पेंशन न मिल पाने के कारण काफी परेशानी के दौर से गुजर रहा है। प्रदेश सरकार ने इन तदर्थ प्राध्यापकों की नियुक्ति नई पेंशन स्कीम 2006 के तहत की। इसके कारण उच्चत्तर शिक्षा विभाग ने जुलाई 2013 में प्राण (परमानेंट अकाउंट नंबर) खुलवाने का आदेश इन प्राध्यापकों को दिया गया। प्राध्यापकों ने इसे लेकर अपना विरोध मुख्यमंत्री के समक्ष पेश किया। मुख्यमंत्री ने तदर्थ प्राध्यापकों की समस्या के निवारण के लिए मंत्री रणदीप सिंह सुरजेवाला की देखरेख में एक कमेटी का गठन किया। प्राध्यापकों ने उन्हें बताया कि हम 1993 से सरकारी सेवाएं दे रहे हैं। 1996 में प्रदेश सरकार ने सभी तदर्थ प्राध्यापकों को नियमित करने का नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया था, मगर बाद में तत्कालीन बंसीलाल सरकार ने इस नोटिफिकेशन को वापस ले लिया। इसके बाद सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार ने 2012 में नियमित करने का कार्य किया था। इन प्राध्यापकों ने सरकार से मांग की थी कि उन्हें प्राण स्कीम के तहत न लेकर जीपीएफ स्कीम (पुरानी पेंशन स्कीम)के तहत लिया जाए।
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