नई दिल्ली : डीडीए से सस्ती दरों पर मिली जमीन पर बनाए गए 410 स्कूलों के अकाउंट ऑडिट करने की मांग को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि स्कूल संचालकों ने बिना शिक्षा निदेशालय की अनुमति के मनमाने ढंग से स्कूल फीस बढ़ाई है और उस स्कूल फीस का प्रयोग लग्जरी कारों को खरीदने में किया जा रहा है। उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश बीडी अहमद और न्यायमूर्ति विभू बाखरू की खंडपीठ ने मामले के संबंध में डीडीए, शिक्षा
निदेशालय और शहरी विकास मंत्रलय के भूमि विकास विभाग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। 1उच्च न्यायालय में जस्टिस फॉर ऑल संस्था ने वकील खगेश बी झा के माध्यम से जनहित याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता का कहना है कि राजधानी में इस समय 410 स्कूल ऐसे हैं जो सरकार व डीडीए से बेहद ही सस्ती दरों पर ली गई जमीन पर बने हैं। डीडीए एक्ट 1957 के तहत जो भी स्कूल सरकार से सस्ती दरों पर ली गई जमीन पर बनाया जाएगा, उसमें स्कूल फीस की वृद्धि करने का अधिकार स्कूल संचालक को नहीं होगा। स्कूल संचालक को स्कूल फीस में वृद्धि करने से पूर्व शिक्षा निदेशालय से इसकी अनुमति लेनी होगी। मगर, सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में उन्हें पता चला कि कुछ गिने-चुने स्कूलों को छोड़ कर सरकार से ली गई जमीन पर बने किसी भी स्कूल द्वारा स्कूल फीस बढ़ाने से पूर्व शिक्षा निदेशालय से अनुमति नहीं ली गई है। ये स्कूल मनमाने ढंग से स्कूल फीस बढ़ा रहे हैं। इस गैर कानूनी ढंग से बढ़ी हुई फीस का इस्तेमाल स्कूल संचालकों द्वारा लग्जरी कारों को खरीदने में किया जा रहा है। जिससे सरकार द्वारा बच्चों को सस्ती शिक्षा दिए जाने का उद्देश्य प्रभावित हो रहा है। लिहाजा, स्कूलों के अकाउंट ऑडिट कराए जाएं। स्कूलों में शिक्षा निदेशालय द्वारा स्कूल फीस तय की जाए और शिक्षा निदेशालय को निर्देश जारी किया जाए कि वह नियम का उल्लंघन करने वाले स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करे।
निदेशालय और शहरी विकास मंत्रलय के भूमि विकास विभाग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। 1उच्च न्यायालय में जस्टिस फॉर ऑल संस्था ने वकील खगेश बी झा के माध्यम से जनहित याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता का कहना है कि राजधानी में इस समय 410 स्कूल ऐसे हैं जो सरकार व डीडीए से बेहद ही सस्ती दरों पर ली गई जमीन पर बने हैं। डीडीए एक्ट 1957 के तहत जो भी स्कूल सरकार से सस्ती दरों पर ली गई जमीन पर बनाया जाएगा, उसमें स्कूल फीस की वृद्धि करने का अधिकार स्कूल संचालक को नहीं होगा। स्कूल संचालक को स्कूल फीस में वृद्धि करने से पूर्व शिक्षा निदेशालय से इसकी अनुमति लेनी होगी। मगर, सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में उन्हें पता चला कि कुछ गिने-चुने स्कूलों को छोड़ कर सरकार से ली गई जमीन पर बने किसी भी स्कूल द्वारा स्कूल फीस बढ़ाने से पूर्व शिक्षा निदेशालय से अनुमति नहीं ली गई है। ये स्कूल मनमाने ढंग से स्कूल फीस बढ़ा रहे हैं। इस गैर कानूनी ढंग से बढ़ी हुई फीस का इस्तेमाल स्कूल संचालकों द्वारा लग्जरी कारों को खरीदने में किया जा रहा है। जिससे सरकार द्वारा बच्चों को सस्ती शिक्षा दिए जाने का उद्देश्य प्रभावित हो रहा है। लिहाजा, स्कूलों के अकाउंट ऑडिट कराए जाएं। स्कूलों में शिक्षा निदेशालय द्वारा स्कूल फीस तय की जाए और शिक्षा निदेशालय को निर्देश जारी किया जाए कि वह नियम का उल्लंघन करने वाले स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करे।
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