प्रदेश सरकार ने राज्य के राजकीय स्कूलों में बेशक विभिन्न योजनाएं शुरू कर योजनाओं की अपनी लिस्ट को बड़ा कर लिया तो लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि प्रदेश के करीब 15 हजार स्कूलों में पाठ्य पुस्तकें अभी तक नहीं पहुंची हैं। सत्र शुरू होने के करीब चार माह बाद भी स्कूलों में पुस्तकें न पहुंचने का खामियाजा राज्य के करीब 20 लाख बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।
स्कूलों में पुस्तकें न मिलने की यह कहानी केवल एक दो जिलों की ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की है। सरकार द्वारा अब तक मात्र 11 जिलों में ही कक्षा पहली व दूसरी के
लिए ही दो टाइटल भेजे गए हैं। चार माह बाद भी दो कक्षाओं के लिए जो किताबें भेजी गई वो भी अधूरी हैं। स्कूलों में कक्षा तीसरी से आठवीं कक्षा की एक भी किताब नहीं आई है जिससे छात्रों में मायूसी है। ऐसे में राज्य सरकार का सबको शिक्षा देने का सपना कैसे पूरा होगा, यह एक विचारणीय पहलू है। अगर समय पर स्कूलों में पुस्तकें नहीं पहुंचेंगी तो इससे रिजल्ट में गिरावट आएगी। बिना पुस्तक बच्चे पढ़ेंगे क्या। पुस्तकें न होने का असर रिजल्ट पर तो पड़ेगा ही। अबकी बार बोर्ड के आए खराब रिजल्ट के बाद भी शिक्षा विभाग ने सबक नहीं लिया। ब्लैक लिस्ट एजेंसी को दे दिया ठेका शिक्षा बोर्ड और उच्च अधिकारियों ने पुस्तकें प्रकाशित करने का ठेका एक ऐसी एजेंसी को दे दिया जो पहले से ही ब्लैक लिस्ट में शामिल है। सूत्रों का कहना है कि जिस एजेंसी को ठेका दिया गया है वह पहले झारखंड में ब्लैक लिस्ट में शामिल है। नियमानुसार जो एजेंसी पहले से ही ब्लैक लिस्ट में शामिल हो उसे पुस्तकें प्रकाशित करने का ठेका नही दिया जा सकता है। शिक्षा विभाग ने खामियां छिपाने के लिए चलाया कक्षा तत्परता कार्यक्रम शिक्षा विभाग ने अपनी कमियां छिपाने के लिए स्कूलों में तत्परता कार्यक्रम चला दिया जिसमें बच्चों को भ्रमण करवाना, पकवान बनाना आदि शामिल था। इस कार्यक्रम के माध्यम से विभाग स्कूलों में पुस्तकें न होने की अपनी कमी छिपाना चाहता था। लेकिन न तो स्कूलों में किताबें पहुुंची और न ही विभाग की खामियां छिप सकी बल्कि शिक्षा विभाग का बजट ही बढ़ा है। हकीकत यह है कि अब चार माह बाद भी स्कूलों में किताबें नहीं हैं। क्या कहता है हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ इस संदर्भ में जब हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष वजीर सिंह व बलबीर सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि कक्षा तत्परता कार्यक्रम के तहत स्कूलों में बच्चों को नहीं रोका जा सकता है। इसके लिए स्कूलों में पुस्तकों का होना बेहद जरूरी है। बिना पुस्तकों के बच्चों को शिक्षित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बच्चों की पढ़ाई के लिए बेसिक चीज पुस्तकें हैं। उन्होंने कहा कि आए दिन शिक्षा विभाग के डायरेक्टरों का तबादला भी इस समस्या रूपी आग में घी का काम कर रहा है। क्या कहते हैं विभाग के डायरेक्टर इस संदर्भ में जब मौलिक शिक्षा निदेशक हरियाणा डी सुरेश से बात की गई तो उन्होंने कहा कि पहले तो उन्होंने स्कूलों में कक्षा तत्परता कार्यक्रम शुरू किया लेकिन साथ ही माना कि स्कूलों में पुस्तकें पहुंचने में दो माह की देरी हुई है। उन्होंने कहा कि उन्होंने दो प्रकाशकों को पुस्तकें प्रकाशित करने का ठेका दे रखा है। अब प्रकाशकों के स्तर पर देरी हो रही है।
लिए ही दो टाइटल भेजे गए हैं। चार माह बाद भी दो कक्षाओं के लिए जो किताबें भेजी गई वो भी अधूरी हैं। स्कूलों में कक्षा तीसरी से आठवीं कक्षा की एक भी किताब नहीं आई है जिससे छात्रों में मायूसी है। ऐसे में राज्य सरकार का सबको शिक्षा देने का सपना कैसे पूरा होगा, यह एक विचारणीय पहलू है। अगर समय पर स्कूलों में पुस्तकें नहीं पहुंचेंगी तो इससे रिजल्ट में गिरावट आएगी। बिना पुस्तक बच्चे पढ़ेंगे क्या। पुस्तकें न होने का असर रिजल्ट पर तो पड़ेगा ही। अबकी बार बोर्ड के आए खराब रिजल्ट के बाद भी शिक्षा विभाग ने सबक नहीं लिया। ब्लैक लिस्ट एजेंसी को दे दिया ठेका शिक्षा बोर्ड और उच्च अधिकारियों ने पुस्तकें प्रकाशित करने का ठेका एक ऐसी एजेंसी को दे दिया जो पहले से ही ब्लैक लिस्ट में शामिल है। सूत्रों का कहना है कि जिस एजेंसी को ठेका दिया गया है वह पहले झारखंड में ब्लैक लिस्ट में शामिल है। नियमानुसार जो एजेंसी पहले से ही ब्लैक लिस्ट में शामिल हो उसे पुस्तकें प्रकाशित करने का ठेका नही दिया जा सकता है। शिक्षा विभाग ने खामियां छिपाने के लिए चलाया कक्षा तत्परता कार्यक्रम शिक्षा विभाग ने अपनी कमियां छिपाने के लिए स्कूलों में तत्परता कार्यक्रम चला दिया जिसमें बच्चों को भ्रमण करवाना, पकवान बनाना आदि शामिल था। इस कार्यक्रम के माध्यम से विभाग स्कूलों में पुस्तकें न होने की अपनी कमी छिपाना चाहता था। लेकिन न तो स्कूलों में किताबें पहुुंची और न ही विभाग की खामियां छिप सकी बल्कि शिक्षा विभाग का बजट ही बढ़ा है। हकीकत यह है कि अब चार माह बाद भी स्कूलों में किताबें नहीं हैं। क्या कहता है हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ इस संदर्भ में जब हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष वजीर सिंह व बलबीर सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि कक्षा तत्परता कार्यक्रम के तहत स्कूलों में बच्चों को नहीं रोका जा सकता है। इसके लिए स्कूलों में पुस्तकों का होना बेहद जरूरी है। बिना पुस्तकों के बच्चों को शिक्षित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बच्चों की पढ़ाई के लिए बेसिक चीज पुस्तकें हैं। उन्होंने कहा कि आए दिन शिक्षा विभाग के डायरेक्टरों का तबादला भी इस समस्या रूपी आग में घी का काम कर रहा है। क्या कहते हैं विभाग के डायरेक्टर इस संदर्भ में जब मौलिक शिक्षा निदेशक हरियाणा डी सुरेश से बात की गई तो उन्होंने कहा कि पहले तो उन्होंने स्कूलों में कक्षा तत्परता कार्यक्रम शुरू किया लेकिन साथ ही माना कि स्कूलों में पुस्तकें पहुंचने में दो माह की देरी हुई है। उन्होंने कहा कि उन्होंने दो प्रकाशकों को पुस्तकें प्रकाशित करने का ठेका दे रखा है। अब प्रकाशकों के स्तर पर देरी हो रही है।
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