धर्मबीर कौशिक
मैं एक शिक्षक हूँ,कोई गुलाम नहीँ तानाशाही का,,
मुझे अपना फ़र्ज़ निभाने दे,आदेश ना दे अपनी मनचाही का,,
मैं चुप हूँ अभी,क्योंकि मैने सहनशीलता को समझा है,,
हर वेग को रोकने की मुझमे क्षमता है,,
ज्वालामुखी जाग गया तो,प्रलय आ जायेगी,,
इतिहास गवाह है,कई सरकारों ने मुझे परखा है,,,
मुझे वंचित ना कर,मेरे अधिकारों से,,
गलत है तेरी बदलाव निति,मेरे विचारों से,,
शिक्षा निति को,बुलेट ट्रेन बनाने की,कोशिश ना कर,,
तंग आ गया हूँ,तेरे रोज़ के प्रहारों से,,
ए राजनीति,मेरी लेखनी को कमज़ोर ना आंकना,,
वातानुकूलित कक्ष में बनाई गयी निति को,मुझ पर ना थोपना,,
चुप्पी टूट गयी तो,आक्रोश तू झेल ना पायेगा,,
सच कंहू तो,कभी बैल की तरह मुझे ना हांकना,,
गुरु की गरिमा को,तू पहचान ना पाया,,
मेरा अस्तित्व मिटाने को,तू शमशान तक हो आया,,
बस-बस-बस,शिक्षण अधिगम कार्य को अब चलने दे,,
शायद कलम की शक्ति को,तू जान ना पाया,,
BLO ,MDM ,डाक,ठेकेदारी से मुझे क्या लेना,,
कर मुक्त मुझे,क्योंकि तुझे उत्तम परिणाम है मुझे देना,,
मेरे सभी लाभ मुझे सम्मान से प्रदान कर,,
फिर देख,भारत में होगा नंबर 1 हरियाणा,,,,,
मैं एक शिक्षक हूँ,कोई गुलाम नहीँ तानाशाही का,,
मुझे अपना फ़र्ज़ निभाने दे,आदेश ना दे अपनी मनचाही का,,,,
मैं एक शिक्षक हूँ,कोई गुलाम नहीँ तानाशाही का,,
मुझे अपना फ़र्ज़ निभाने दे,आदेश ना दे अपनी मनचाही का,,
मैं चुप हूँ अभी,क्योंकि मैने सहनशीलता को समझा है,,
हर वेग को रोकने की मुझमे क्षमता है,,
ज्वालामुखी जाग गया तो,प्रलय आ जायेगी,,
इतिहास गवाह है,कई सरकारों ने मुझे परखा है,,,
मुझे वंचित ना कर,मेरे अधिकारों से,,
गलत है तेरी बदलाव निति,मेरे विचारों से,,
शिक्षा निति को,बुलेट ट्रेन बनाने की,कोशिश ना कर,,
तंग आ गया हूँ,तेरे रोज़ के प्रहारों से,,
ए राजनीति,मेरी लेखनी को कमज़ोर ना आंकना,,
वातानुकूलित कक्ष में बनाई गयी निति को,मुझ पर ना थोपना,,
चुप्पी टूट गयी तो,आक्रोश तू झेल ना पायेगा,,
सच कंहू तो,कभी बैल की तरह मुझे ना हांकना,,
गुरु की गरिमा को,तू पहचान ना पाया,,
मेरा अस्तित्व मिटाने को,तू शमशान तक हो आया,,
बस-बस-बस,शिक्षण अधिगम कार्य को अब चलने दे,,
शायद कलम की शक्ति को,तू जान ना पाया,,
BLO ,MDM ,डाक,ठेकेदारी से मुझे क्या लेना,,
कर मुक्त मुझे,क्योंकि तुझे उत्तम परिणाम है मुझे देना,,
मेरे सभी लाभ मुझे सम्मान से प्रदान कर,,
फिर देख,भारत में होगा नंबर 1 हरियाणा,,,,,
मैं एक शिक्षक हूँ,कोई गुलाम नहीँ तानाशाही का,,
मुझे अपना फ़र्ज़ निभाने दे,आदेश ना दे अपनी मनचाही का,,,,
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