दिल बहुत कर रहा खुल कर रोने को।
आज कुछ नहीं बचा मेरे पास खोने को।
मेरी सारी मेहनत ख़ाक में मिल गयी,
दिल नहीं करता आगे से फसल बोने को।
बहुत आस थी गेहूँ की फसल से मुझको,
पर क्या पता था भगवान तैयार हैं डुबोने को।
बेटी की शादी, बेटों की पढ़ाई कैसे होगी अब,
परिवार मजबूर हो जायेगा खाली पेट सोने को।
पलंग, चारपाई पर आराम करना कहाँ नसीब में,
धरती की गोद में सोना है बिछा गमों के बिछौने को।
मेरे जीवन में अभावों का आलम तो देखिये आप,
आँखों से आँसू भी नहीं निकलते पलकें भिगोने को।
सदियों से ये ही रीत चलती आ रही है यहाँ,
हर किसान जन्म लेता है कर्ज का बोझ ढ़ोने को।
गरीबी और महंगाई की मार सहता हूँ चुपचाप,
जिंदगी में कुछ नहीं बचा और बुरा होने को।
आज कुछ नहीं बचा मेरे पास खोने को।
मेरी सारी मेहनत ख़ाक में मिल गयी,
दिल नहीं करता आगे से फसल बोने को।
बहुत आस थी गेहूँ की फसल से मुझको,
पर क्या पता था भगवान तैयार हैं डुबोने को।
बेटी की शादी, बेटों की पढ़ाई कैसे होगी अब,
परिवार मजबूर हो जायेगा खाली पेट सोने को।
पलंग, चारपाई पर आराम करना कहाँ नसीब में,
धरती की गोद में सोना है बिछा गमों के बिछौने को।
मेरे जीवन में अभावों का आलम तो देखिये आप,
आँखों से आँसू भी नहीं निकलते पलकें भिगोने को।
सदियों से ये ही रीत चलती आ रही है यहाँ,
हर किसान जन्म लेता है कर्ज का बोझ ढ़ोने को।
गरीबी और महंगाई की मार सहता हूँ चुपचाप,
जिंदगी में कुछ नहीं बचा और बुरा होने को।
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