Wednesday, December 4, 2013

YE SHIKHA KO KYA HO RAHA HAI?


तो क्या अब स्कूल-कॉलेजों में शिक्षकों को बुलेट प्रूफ जैकेट पहन कर आना होगा? क्या शिक्षण संस्थानों के गेट पर मेटल डिटेक्टर लगवाने पड़ेंगे? क्या अध्यापक व प्राध्यापक पढ़ाई में कमजोर विद्यार्थियों को अनुत्तीर्ण करना बंद कर देंगे? क्या विद्यार्थियों को रोल नंबर स्लिप तश्तरी में परोस कर देनी होगी? रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में होटल मैनेजमेंट के छात्र द्वारा विभाग के निदेशक को गोली मारने के बाद ऐसे कई सवाल एक साथ उठ खड़े हुए हैं। यह प्रदेश के शिक्षा क्षेत्र में ऐसी संस्कृति पनपने की शुरुआत का संकेत है जो शिक्षा, शिक्षक एवं विद्यार्थी, तीनों के लिए घातक साबित हो सकती है। आरंभिक अवस्था में ही इसका निदान होना चाहिए। छात्र को इस बात का गुस्सा था कि उसे जानबूझ कर बार-बार फेल किया गया। यह गुस्सा उतारने
के लिए विभाग के निदेशक को गोली मार दी। घटना यह बताने के लिए पर्याप्त है कि मदवि में प्राध्यापकों, विभागाध्यक्षों व छात्रों की सुरक्षा राम भरोसे है। सवाल यह भी है कि क्या अन्य विवि एवं स्कूलों में सुरक्षा के प्रबंध इससे बेहतर हैं? जवाब निश्चित रूप से ना में ही मिलेगा। गुजवि परिसर में कुछ माह पूर्व छात्र को सिरफिरे आशिक ने तलवार से गोद दिया था। मुरथल व खानपुर स्थित विश्वविद्यालयों में सरे आम घातक हथियार लेकर छात्र भिड़े और छात्रओं के अपहरण की कोशिश हुई। सीडीएलयू में भी कई बार हंगामे हो चुके। सबसे घातक व चिंताजनक बात यह है कि विद्यार्थी कॉलेज, विश्वविद्यालयों में हथियार लेकर आने लगे। लगता है कॉलेज या विवि प्रशासन को इस बात से कोई सरोकार नहीं कि छात्रों के हाथ में पुस्तकें, लैपटॉप, मोबाइल हैं या पिस्तौल। शिक्षण संस्थाओं में हिंसा और अपराध में वृद्धि किसी भी समाज या व्यवस्था का चेहरा विकृत कर सकती है। नीति-निर्धारकों, शिक्षा क्षेत्र के थिंक टैंक को इस पर गंभीर मंथन करना होगा। वहां सुरक्षा प्रबंधों को बदले हालात और माहौल के मुताबिक बनाना होगा। उत्तर प्रदेश व दिल्ली से सटे होने के बावजूद हरियाणा के विवि एवं कॉलेज हथियारों व छात्र गुटों के हिंसक संघर्ष से अब तक बचे रहे थे। अब लगता है कि संक्रमण आ चुका, नहीं चेते तो नुकसान व पीड़ा ही बचेगी। सरकार के साथ विवि प्रशासन को सुनिश्चित करना होगा कि मदवि की घटना की पुनरावृत्ति किसी कीमत पर न होने पाए। युवा पीढ़ी की सोच को सकारात्मक, प्रगतिशील बनाने और और शिक्षा सदनों को कुंठा व अवसाद का अखाड़ा बनाने से रोकने के लिए अतिरिक्त प्रयासों की आवश्यकता है।

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