मां सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं। शास्त्र ज्ञान को देने वाली है। भगवती शारदा का मूलस्थान अमृतमय प्रकाशपुंज है। जहां से वे अपने उपासकों के लिए निरंतर 50 अक्षरों के रूप में ज्ञानामृत की धारा प्रवाहित करती हैं। उनका विग्रह शुद्ध ज्ञानमय, आनन्दमय है। उनका तेज दिव्य एवं अपरिमेय है और वे ही शब्द ब्रह्म के रूप में पूजी जाती हैं।
भगवती सरस्वती सत्वगुणसंपन्न हैं। इनके अनेक नाम हैं, जिनमें से वाक्, वाणी, गिरा, भाषा, शारदा, वाचा, श्रीश्वरी,
वागीश्वरी, ब्राह्मी, गौ, सोमलता, वाग्देवी और वाग्देवता आदि प्रसिद्ध हैं। ब्राह्मणग्रंथों के अनुसार वाग्देवी, ब्रह्मस्वरूपा, कामधेनु, तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि हैं। ये ही विद्या, बुद्धि और सरस्वती हैं। इस प्रकार देवी सरस्वती की पूजा एवं आराधना के लिए माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि वसंत पंचमी को ही इनका अवतरण दिवस माना जाता है।
वागीश्वरी जयंती एवं श्री पंचमी के नाम से भी इस तिथि को जाना जाता है। इस दिन इनकी विशेष अर्चना-पूजा तथा व्रतोत्सव के द्वारा इनके सान्निध्य प्राप्ति की साधना की जाती है। सरस्वती देवी की इस वार्षिक पूजा के साथ ही बालकों के अक्षरारंभ एवं विद्यारंभ की तिथियों पर भी सरस्वती पूजन का विधान है।
भगवती सरस्वती की पूजा हेतु आजकल सार्वजनिक पूजा पंडालों की रचना करके उसमें देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित करने एवं पूजन करने का प्रचलन दिखाई पड़ता है, किंतु शास्त्रों में वाग्देवी की आराधना व्यक्तिगत रूप में ही करने का विधान बतलाया गया है।
भगवती सरस्वती के उपासक को माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को प्रातःकाल में भगवती सरस्वती की पूजा करनी चाहिए।
पूजन कार्य में स्वयं सक्षम न हो तो किसी ज्ञानी कर्मकांडी या कुलपुरोहित से दिशा-निर्देश से पूजन कार्य संपन्न करें।
प्रत्येक वर्ष माघ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। देवी सरस्वती के इस प्राकट्य पर्व को सर्वसिद्धिदायक पर्व माना जाता है। वसंत पंचमी 4 फरवरी को है। माघ माह में जब सूर्य देवता उत्तरायण रहते हैं ऐसे में गुप्त नवरात्रि के मध्य पंचमी तिथि को लोक प्रसिद्ध स्वयंसिद्ध मुहूर्त के रूप में माना जाता है।
वागीश्वरी जयंती और श्रीपंचमी
शास्त्रों के अनुसार यह दिन प्रत्येक शुभ कार्यों के लिए अतिश्रेष्ठ माना जाता है। प्रकृति के चितेरों, साहित्य मनीषियों और कवियों ने इस दिन को अपने-अपने तरीके से परिभाषित किया है। यह विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना का दिन है। इस तिथि को वागीश्वरी जयंती और श्रीपंचमी नाम से भी जाना जाता है।
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