Sunday, September 8, 2013

SHIKSHA VIBHAG ME NAHI HAI SAB KUCH THEEK

विधानसभा में शिक्षा मंत्री और सत्ताधारी दल के ही वरिष्ठ विधायक के बीच गरमागरम बहस से एक बात तो स्पष्ट हो गई कि शिक्षा क्षेत्र में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। विधायक ने खुले आम कहा कि सरकारी स्कूलों में खराब परीक्षा परिणाम गंभीर चिंता का विषय है। शिक्षा विभाग को अपनी कार्यशैली बदलनी होगी। शिक्षकों के रिक्त पद, आरोही स्कूल, रेशनेलाइजेशन, गेस्ट टीचर, निदेशकों के तबादले, मिड डे मील, दवा से स्कूली बच्चों के बीमार होने जैसे कई और नुकीले सवाल भी दागे गए। किसी सवाल का तर्कसंगत जवाब न मिलना संकेत दे रहा है कि विभाग के पास शिक्षा ढांचा दुरुस्त करने के लिए कोई योजना फिलहाल है ही नहीं, लिहाजा निकट
भविष्य में परिस्थितियां ऐसी ही रहने की आशंका है। सत्ताधारी दल के विधायक ने विपक्ष जैसी भूमिका निभा कर शिक्षा की बदहाली पर ध्यान खींचने की सराहनीय कोशिश की। आम तौर पर खामियां, विसंगतियां स्वीकार करने को सत्ताधारी दल तैयार नहीं होता, सारा दोष विपक्ष या पूर्ववर्ती सरकारों पर डाल दिया जाता है। दसवीं का अत्यधिक खराब परीक्षा परिणाम जांच का विषय है। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं शिक्षण परिषद ने संज्ञान लेते हुए रिपोर्ट तलब की है। यह दुखद है कि शिक्षा मंत्री वास्तविक कारणों की तह तक जाने के बजाय इसके लिए शिक्षा अधिकार कानून या प्रैक्टिकल-थ्योरी परीक्षा प्रणाली को जिम्मेदार ठहरा रही हैं। लग रहा है शिक्षा की वास्तविक स्थिति से मंत्री जी स्वयं अनभिज्ञ हैं, इसीलिए गहन मंथन की आवश्यकता महसूस नहीं की जा रही। यही वजह है कि बार-बार अदालतें निर्णय व नीति पर सरकार को आईना दिखा रही हैं।1 शिक्षा अधिकार कानून निरक्षरता के जड़मूल से उन्मूलन के लिए लागू हुआ है, अपनी खामियों को छिपाने के लिए इसे ढाल नहीं बनाया जाना चाहिए। पहली से आठवीं तक बच्चों को पुस्तकें अब तक नहीं मिल पाईं, क्या इसके लिए भी शिक्षा अधिकार कानून दोषी है? अध्यापकों के रिक्त पद भरने के लिए वर्षो तक केवल विचार ही क्यों चलता रहा? सर्वशिक्षा अभियान को प्रयोग का अखाड़ा क्यों बना दिया गया? बहुत देर हो चुकी, अब भी नहीं जागे तो कमान हाथ से निकल सकती है। सरकारी स्कूलों में पहली से दसवीं तक के बच्चों के शिक्षण के लिए नए सिरे से तैयारी करने की आवश्यकता है। शैक्षणिक माहौल को प्रगतिशील और प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए तमाम खामियां दूर करने की दीर्घकालिक योजना बने। निर्थक प्रयोगवाद छोड़ शिक्षा ढांचे की हर कड़ी को जांच-परख कर अगला कदम उठाया जाए।

No comments:

Post a Comment