हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा प्रथम समेस्टर परीक्षा स्कूलों में ही करवाए जाने की नीति से परीक्षा में खुले आम नकल हो रही है। स्कूलों में ही बनाए गए परीक्षा केंद्रों में बच्चें खुले में नकल कर रहे हैं। सबसे अधिक निजी स्कूलों में परीक्षा दे रहे परीक्षार्थियों की पौ-बारह हो रही है। कई परीक्षा केंद्रों में तो बच्चों को किताबें खोलकर परीक्षा देते हुए देखा जा सकता है और यही हाल सरकारी स्कूलों का है।1 बोर्ड की नई नीति के कारण भले ही शिक्षा बोर्ड ने अपना बोझ हलका कर लिया हो, लेकिन शिक्षा के साथ खुला आम खिलवाड़ किया है। नई नीति से ली जा रही बोर्ड की प्रथम समेस्टर की परीक्षा में कमजोर बच्चों को काफी फायदा होने वाला है, लेकिन होनहार बच्चों को गहरा धक्का लगा है। कमजोर बच्चों को नई नीति ने होनहार बना दिया हैं और
होनहार बच्चों को कमजोर बच्चों की श्रेणी में धकेल दिया है। शनिवार को दसवीं कक्षा के अंग्रेजी विषय की परीक्षा में भी जमकर नकल चली। सरकार एंव शिक्षा बोर्ड की नई परीक्षा नीति को लेकर अभिभावकों व होनहार विद्यार्थियों में खासा रोष बना हुआ है। उनका कहना है कि अगर ऐसे ही खुले में नकल करवा कर परीक्षा लेनी थी तो ऐसी परीक्षा की जरूरत ही क्या थी। कोई भी स्कूल नहीं चाहता की उनके स्कूल का रिजल्ट खराब आए। अगर परीक्षा का संचालन उनके हाथों में है तो उसका भरपूर फायदा भी ज्यादातर स्कूल उठा रहे हैं और जिन स्कूलों में प्रबंधन शिक्षा के प्रति संजीदा हैं, वहां कुछ अंकुश देखा जा सकता है। 1अभी तक बोर्ड द्वारा सेंटर बनाकर परीक्षा ली जाती थी। लेकिन इस बार बोर्ड ने नियमों में बदलाव करते हुए संबंधित स्कूलों में ही अपने स्तर पर परीक्षा का प्रावधान किया है। ज्यादातर स्कूलों में दसवीं कक्षा की परीक्षा चल रही है, 12वीं की परीक्षा अक्टूबर में होने वाली है। बोर्ड द्वारा स्कूलों में ही अपने स्तर पर परीक्षा के निर्णय से परीक्षा मात्र औपचारिकता भर रह गई है। निजी स्कूल संचालक तो यहां तक कह रहे हैं कि अगर उन्होंने नकल नहीं करवाई तो उनके बच्चों का रिजल्ट खराब हो जाएगा व उनके स्कूल में कौन बच्चों को दाखिल कराएगा। नई परीक्षा पद्धति के कारण शिक्षा का ढांचा उठने की अपेक्षा नीचे जाने का भय बन गया है। नई परीक्षा पद्धति का सामाजिक संगठनों ने विरोध करते हुए सीएम को ज्ञापन भेजने का निर्णय लिया है
होनहार बच्चों को कमजोर बच्चों की श्रेणी में धकेल दिया है। शनिवार को दसवीं कक्षा के अंग्रेजी विषय की परीक्षा में भी जमकर नकल चली। सरकार एंव शिक्षा बोर्ड की नई परीक्षा नीति को लेकर अभिभावकों व होनहार विद्यार्थियों में खासा रोष बना हुआ है। उनका कहना है कि अगर ऐसे ही खुले में नकल करवा कर परीक्षा लेनी थी तो ऐसी परीक्षा की जरूरत ही क्या थी। कोई भी स्कूल नहीं चाहता की उनके स्कूल का रिजल्ट खराब आए। अगर परीक्षा का संचालन उनके हाथों में है तो उसका भरपूर फायदा भी ज्यादातर स्कूल उठा रहे हैं और जिन स्कूलों में प्रबंधन शिक्षा के प्रति संजीदा हैं, वहां कुछ अंकुश देखा जा सकता है। 1अभी तक बोर्ड द्वारा सेंटर बनाकर परीक्षा ली जाती थी। लेकिन इस बार बोर्ड ने नियमों में बदलाव करते हुए संबंधित स्कूलों में ही अपने स्तर पर परीक्षा का प्रावधान किया है। ज्यादातर स्कूलों में दसवीं कक्षा की परीक्षा चल रही है, 12वीं की परीक्षा अक्टूबर में होने वाली है। बोर्ड द्वारा स्कूलों में ही अपने स्तर पर परीक्षा के निर्णय से परीक्षा मात्र औपचारिकता भर रह गई है। निजी स्कूल संचालक तो यहां तक कह रहे हैं कि अगर उन्होंने नकल नहीं करवाई तो उनके बच्चों का रिजल्ट खराब हो जाएगा व उनके स्कूल में कौन बच्चों को दाखिल कराएगा। नई परीक्षा पद्धति के कारण शिक्षा का ढांचा उठने की अपेक्षा नीचे जाने का भय बन गया है। नई परीक्षा पद्धति का सामाजिक संगठनों ने विरोध करते हुए सीएम को ज्ञापन भेजने का निर्णय लिया है
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