Thursday, August 1, 2013

BOOKS KI WAIT ME AANKHEN TARSI

झज्जर : कहा जाता है कि कल के देश का भविष्य आज के बच्चों के कंधों पर होगा। अगर आज के बच्चे अच्छे पढ़े लिखें होगें तो आने वाले समय में देश भी प्रगति करेगा और शिक्षित भी होगा। लेकिन वर्तमान में शिक्षा विभाग की नीतियां उनकी शिक्षा में रोड़ा बनती जा रही हैं। शिक्षा के सत्र को शुरू हुए चार माह का समय बीत चुका है, लेकिन आज तक तीसरी से आठवीं तक के सभी बच्चों तक पाठय पुस्तकें भी नहीं पहुंच पाई हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारी बच्चों को आश्वासनों से शिक्षा देने में जुटे हुए हैं। वहीं विद्यार्थियों के बैग आज तक
पुस्तकों से खाली हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये बच्चें मैरिट सूची में अपना नाम कैसे दर्ज करा पाएंगे। आरटीई के तहत पहली से आठवीं तक के विद्यार्थियों को दिए जाने वाली पुस्तके आज तक सभी कक्षाओं के बच्चों तक नहीं पहुंच पाई हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारियों की बात पर विश्वास किया जाए तो पहली व दूरी कक्षा के बच्चों तक तो पुस्तके पहुंच गई हैं, लेकिन बाकी कक्षा तक के बच्चों तक तो किताबे ग्रीष्म कक्षाओं के बच्चों तक 40 से 50 प्रतिशत ही पुस्तक ही पहुंच पाई हैं। जबकि तीसरी, चौथी, पांचवीं, छटी, सातवीं व आठवीं कक्षा के बच्चों तक पुस्तकें अभी भी नहीं पहुंच पाई हैं। सरकार की तरफ से निजी पुस्तक प्रकाशन केंद्रों को पुस्तकों के प्रकाशन व वितरण के लिए ठेका दिया हुआ है। इससे पहले हरियाणा शिक्षा बोर्ड भिवानी की तरफ से पुस्तकों का प्रकाशन किया जाता था। उस दौरान भी सभी स्कूलों में विभिन्न विषयों की पुस्तकें साल के अंत तक नहीं पहुंच पाती थी। सरकार ने इस बार सभी विषयों की पुस्तकों का बंडल बनाकर स्कूलों तक पहुंचाने के लिए निजी एजेंसियों को ठेका दिया हुआ है। इसके बावजूद बच्चों को पुस्तकें नहीं मिली हैं। पहली से आठवीं तक के 51586 विद्यार्थी पुस्तक आने के इंतजार में बैठे थे इन में से पहली से चौथी कक्षा तक के बच्चों के लिए तो पुस्तकें आ गई हैं, लेकिन बाकि बच्चें अभी भी पुस्तक आने का इंतजार कर रहे हैं। जिले में 565 सरकारी स्कूल हैं। सरकारी स्कूलों में 194 राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, 52 उच्च विद्यालय, 54 माध्यमिक विद्यालय तथा 265 प्राथमिक विद्यालय शामिल हैं। इन स्कूलों में ग्यारहवीं कक्षा को छोड़कर 70586 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। विद्यार्थियों के सामने अजीबो गरीब स्थिति बनी हुई है। निजी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थी अपना कोर्स पूरा करने के बाद दोहराई करने में जुटे हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों को तो यह भी नहीं पता है कि उनकी पुस्तकों में कितने अध्याय हैं और उनमें क्या दिया गया है। क्योकि उनके पास तो पुस्तकें ही नहीं हैं। डीईईओ सत्यवती नांदल का कहना है कि अब पुस्तकें सीधे स्कूलों की बजाए खंड स्तर पर मंगवाई गई हैं ताकि उनका वितरण जल्दी हो सके। उनका कहना है पुस्तकों के बारे में विभाग के मुख्यालय को बार-बार लिखे जा रहे हैं। इस सप्ताह में किताबे आने की संभावना है। उनका कहना है कि बच्चों को लाइब्रेरी की पुरानी पुस्तकों से शिक्षा दी जा रही है। ताकि जब तक नई पुस्तके बच्चों तक पहुंच उस समय तक कुछ कोर्स हो सके।

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