चंडीगढ़। जिस सरस्वती नदी की बरसों से तलाश चल रही है, वह हरियाणा के सात जिलों से होते हुए राजस्थान और गुजरात के रास्ते भारत-पाक सीमा के निकट अरब सागर में जाकर गिरती है। हरियाणा में सरस्वती नदी 275 किलोमीटर लंबी है। राजस्व रिकार्ड में इस नदी का जिक्र है।
यमुनानगर के आदिबद्री से शुरू होकर यह नदी कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद, फतेहाबाद और सिरसा को होते हुए राजस्थान में प्रवेश कर जाती है। सरस्वती राजस्थान के भी सात जिलों में बहती है और नागौर को होते हुए गुजरात में प्रवेश करती है। गुजरात के छह जिलों में बहती हुई सरस्वती नदी भारत-पाक सीमा पर फारस की खाड़ी में जाकर अरब सागर में समा जाती है।
सरस्वती नदी शोध संस्थान के उप प्रधान भारत भूषण भारती के अनुसार ऋग्वेद में सरस्वती का जिक्र है। इस नदी के लिए अन्तफलील शब्द का इस्तेमाल किया गया है, जिसका मतलब है कि धरती के नीचे चलने वाली नदी। इस नदी के पुनर्जन्म के लिए दो स्तर पर काम हुआ। पहले वेद-पुराण समेत कई धार्मिक ग्रंथों में सरस्वती नदी के बारे में तमाम तथ्य जुटाए गए। उसके बाद उदगम स्थल ढूंढने के लिए हरियाणा का राजस्व रिकार्ड खंगाला गया।
भारती के अनुसार सरस्वती नदी का उदगम स्थल यमुनानगर जिले का
आदिबद्री ही है। राजस्व रिकार्ड में यह दर्ज है। राज्य के जिन सात जिलों से होकर यह नदी बहती है, उनकी निरंतरता चैक की गई, जो सही पाई गई। यानि इन सात जिलों में बीच में कहीं भी नदी की टूटन नहीं है। सिरसा जिले का नाम भी सरस्वती नदी पर ही पड़ा है। उन्होंने बताया कि 1982 में आदिबद्री से गुजरात तक पदयात्राएं हुई थी। 1999 में जब सरस्वती शोध संस्थान बना, तब से 2014 तक 50 वर्कशाप हुई और दिल्ली में अंतरार्ष्ट्रीय कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। तमाम खोज के बाद केंद्रीय भूमिगत जल विभाग ने स्वीकार कर लिया कि सरस्वती नदी धरती के नीचे चल रही है और इसका प्रवाह काफी तेज है। इसका पानी भी काफी मीठा है। यह भी पढ़ें- प्रयास लाया रंग, धरती की कोख से निकली सरस्वती नदी भारती के मुताबिक जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा और विधानसभा चुनाव के प्रचार के लिए कुरुक्षेत्र आए थे, तब उनके समक्ष सरस्वती हैरीटेज के नाम से प्रोजेक्ट रखा गया। यह बहुआयामी प्रोजेक्ट है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल सरस्वती हैरीटेज विकास बोर्ड के नाम से इसका गठन कर चुके हैं। इसके लिए करीब 100 करोड़ रुपये का बजट है, जिसमें से 50 करोड़ रुपये की राशि जारी हो चुकी है।
आदिबद्री ही है। राजस्व रिकार्ड में यह दर्ज है। राज्य के जिन सात जिलों से होकर यह नदी बहती है, उनकी निरंतरता चैक की गई, जो सही पाई गई। यानि इन सात जिलों में बीच में कहीं भी नदी की टूटन नहीं है। सिरसा जिले का नाम भी सरस्वती नदी पर ही पड़ा है। उन्होंने बताया कि 1982 में आदिबद्री से गुजरात तक पदयात्राएं हुई थी। 1999 में जब सरस्वती शोध संस्थान बना, तब से 2014 तक 50 वर्कशाप हुई और दिल्ली में अंतरार्ष्ट्रीय कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। तमाम खोज के बाद केंद्रीय भूमिगत जल विभाग ने स्वीकार कर लिया कि सरस्वती नदी धरती के नीचे चल रही है और इसका प्रवाह काफी तेज है। इसका पानी भी काफी मीठा है। यह भी पढ़ें- प्रयास लाया रंग, धरती की कोख से निकली सरस्वती नदी भारती के मुताबिक जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा और विधानसभा चुनाव के प्रचार के लिए कुरुक्षेत्र आए थे, तब उनके समक्ष सरस्वती हैरीटेज के नाम से प्रोजेक्ट रखा गया। यह बहुआयामी प्रोजेक्ट है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल सरस्वती हैरीटेज विकास बोर्ड के नाम से इसका गठन कर चुके हैं। इसके लिए करीब 100 करोड़ रुपये का बजट है, जिसमें से 50 करोड़ रुपये की राशि जारी हो चुकी है।
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