Monday, May 18, 2015

गेस्ट टीचर्स पर पुलिसिया कहर

Satish Tyagi
"गेस्ट टीचर्स पर पुलिसिया कहर " सुबह अखबार हाथ में आया तो इस शीर्षक से पहली खबर पढ़ने को मिली । ये कहर मैंने हरेक सरकार में देखा और बतौर पत्रकार ऐसी घटनाओं को मौके पर कवर भी किया है । कल जिनकी सरकार के राज में यह पुलिसिया कहर बरपा है , उसके नेता विपक्ष में रहते हुए इसे "लोकतंत्र की हत्या ",मानव अधिकारों का हनन ", "पुलिसिया राज" , "अंग्रेज के राज से भी बदतर" सरीखा ज़ुल्म बताते हुए सरकार के इस्तीफे की मांग तक करते थे लेकिन आज सबकी जवान पर सत्ता का ताला लटका है । है कोई माई का लाल जो इस ज़ुल्म की निंदा करते हुए खुद सरकार से नाता तोड़े ? दशकों पहले डॉ लोहिया ने अपनी ही सोशलिस्ट पार्टी की सरकार को किसानों पर लाठीचार्ज के मुद्दे पर गिरा दिया था । "लाठी -गोली की सरकार नहीं चलेगी ,,नहीं चलेगी " यह नारा आज के सत्ताधारी कोंग्रसी सरकारों के दमन के खिलाफ लगाते थे लेकिन अब सत्ता को सांप सूंघ गया है । यह सैद्धांतिक दोगलापन विशुद्ध हरामीपन है । करनाल में गेस्ट टीचर्स पर ढाया गया पुलिसिया कहर इस सरकार का पहला पाप भी है और अपराध भी । मनोहर जी , अभी साढ़े चार साल शेष हैं आपकी सरकार के । आप राजनीतिक संस्कृति बदलने निकले हैं । लाठी -गोली और दमन की पुलिसिया संस्कृति को भी बदलिये । जिस सरकार में संवेदनशीलता और करुणा का अभाव हो उसे अनैतिक कहना भी गलत नहीं है । रामपाल काण्ड जैसा संयम यहाँ भी रखा जा सकता था कि नहीं ? खाकी का खौफ खत्म नहीं हुआ तो लोकतंत्र यूँ ही कराहता रहेगा । कुछ सोचिये और कीजिये ।

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