भगवान पर जोर नहीं देता हूं,
भगवता पर जोर देता हूं।
भग वत्ता का अर्थ हुआ,
नहीं कोई पूजा करनी है,
नहीं कोई प्रार्थना,
नहीं किन्हीं मंदिरों में घड़ियाल बजाने है,
न पूजा के थाल सजाने है,
न अर्चना, न विधि-विधान, यज्ञ-हवन,
वरन अपने भीतर वह जो जीवन की सतत धारा है।
उस धारा का अनुभव करना है,
वह जो चेतना है, चैतन्य है।
- ओशो....
भगवता पर जोर देता हूं।
भग वत्ता का अर्थ हुआ,
नहीं कोई पूजा करनी है,
नहीं कोई प्रार्थना,
नहीं किन्हीं मंदिरों में घड़ियाल बजाने है,
न पूजा के थाल सजाने है,
न अर्चना, न विधि-विधान, यज्ञ-हवन,
वरन अपने भीतर वह जो जीवन की सतत धारा है।
उस धारा का अनुभव करना है,
वह जो चेतना है, चैतन्य है।
- ओशो....
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