भगवान शिव को ही लिंग रूप में क्यों पूजा जाता है
भगवान शिव ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल अर्थात निराकार हैं। उनका न कोई रूप है और न ही आकार वे निराकार हैं। आदि और अंत न होने से लिंग को शिव जी का निराकार रूप माना जाता है। जबकि शिव मूर्ति को उनका साकार रूप। केवल शिव ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। इस रूप में समस्त ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है क्योंकि वे ही समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं। शिव जी के निराकार होने के कारण ही उनका लिंग रूप में पूजन होता है अर्थात शिवलिंग शिव के निराकार रूप का प्रतीक है इसलिए मूर्ति और लिंग दोनों रूपों में पूजे जाते हैं। शिव के अतिरिक्त अन्य देवी-देवता ब्रह्म का स्वरूप नहीं माने गए हैं इसलिए उन्हें लिंग
रूप में नहीं पूजा जाता। शिव का मूर्ति पूजन भी श्रेष्ठ है किंतु लिंग पूजन सर्वश्रेष्ठ है। ब्रह्मा इस सृष्टि के जन्मदाता हैं, विष्णु पालनकर्ता और शिव संहारकर्ता। फिर भी मूल रूप में ये तीनों शक्तियां एक ही हैं और वह है आदि शिव। आदिशक्ति शिव ने ही स्वयं को तीन अलग-अलग रूपों में प्रकट किया हुआ है। इस प्रकार शिव ही सृष्टि को बनाने वाले हैं, वही उसका पालन करने वाले हैं और वही उसका विनाश करने वाले भी हैं। शिवलिंग साकार एवं निराकार ईश्वर का 'प्रतीक' मात्र है, जो परमात्मा- आत्म-लिंग का द्योतक है। शिव और शक्ति का पूर्ण स्वरूप है शिवलिंग। शिवलिंग हमें बताता है कि इस संसार में न केवल पुरुष का और न ही केवल स्त्री का वर्चस्व है बल्कि, दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों ही समान हैं। शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग की पूजा करके जो भक्त शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं उन्हें प्रातः काल से लेकर दोपहर से पहले ही इनकी पूजा कर लेनी चाहिए। इस दौरान शिवलिंग की पूजा विशेष फलदायी होती है। इसकी पूजा से मनुष्य को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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