गेस्ट अध्यापको के बारें में आजकल social media पर इतनी चर्चा क्यों .......?
अध्यापक-समाज से जुड़ा हर इंसान ये जानना चाहता है कि नई सरकार इन गेस्टो पर इतनी मेहरबान क्यों.....? इस बात को तथ्यात्मक ढंग से समंझने के लिए आपको इसका पूर्ण इतिहास गहराई से जानना होगा।
हुड्डा के पहले शासन काल (2005-2009) में शिक्षा विभाग में शिक्षको तथा विद्यालयों में विधार्थियो की भारी कमी थी। इसकी भरपाई करने के लिए सरकार ने नियमित भर्ती करने की अपेक्षा किसी बाहरी एजेंसी से contract base पर शिक्षकों की भर्ती कराने का निर्णय लिया।पंजाब की एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा आवेदन मांगे गये। एजेंसी द्वारा catagorywise मेरिट बनाई गई लेकिन कुछ राजनीतिक या अन्य कारणों से ये भर्ती withdraw कर दी गई।इसके बदले सरकार ने गेस्ट अध्यापक लगाने का निर्णय लिया,जिसके लिएguest faculty policy बनाई गयी।इसके तहत सभी विधालयो के हेडमास्टर व् प्रिंसिपल तथा सभी बी.इ.ओ को एक committee बनाकर मेरिट के आधार पर गेस्ट अध्यापक चुनने के प्राधिकार दिए गये। ये प्राधिकार स्वीकृत पदों व् वर्क लोड दोनों आधार पर थे।मेरिट का आधार आवेदक का अकादमिक रिकॉर्ड तथा उसकी
स्थानीयता(localty) रखी गयी।प्राथमिकता लोकल आवेदक को दी गई।लोकल आवेदक उपलब्ध न होने की स्थिति में ब्लाक या अन्य स्तर पर योग्य उम्मीदवार चुनने की व्यस्था की गई।इसके लिए विभिन्न समाचार पत्रों में दिसम्बर 2005 के आसपास भर्ती हेतु विज्ञापन भी दिए गये।ये व्यस्था केवल मार्च 2006 तक के लिए की गयी। इस व्यस्था से उस समय के लगभग सभी बेरोजगार योग्य उम्मीदवारों को आवेदन करने का मौका मिल गया। राज्य के सभी जिलो में ऐसे विद्यालयों में गेस्ट भर्ती शुरू हुई,जहाँ पर अध्यापको की भारी कमी थी। चाहे वहां स्वीकृत पद था या वर्क लोड था। उस समय गेस्ट अध्यापको की संख्या नाममात्र की थी। मार्च 2006 में सत्र खत्म होते ही इन्हें विभाग द्वारा निकालने का फरमान जारी कर दिया।गेस्ट अध्यापक कोर्ट चले गये। कोर्ट ने व्यस्था दी कि नियमित भर्ती होने तक इन अध्यापकों को सेवा में रखा जाये। शिक्षागत ढांचे में आंशिक सुधार होने व् नियमित भर्ती न करने के विभिन्न राजनितिक व् आर्थिक कारण गिनाते हुए सरकार ने guest faculty policy का ही विस्तार करना शुरू किया।policy में विभिन्न परिवर्तन किये गये।एक बार फिर कई समाचार पत्रों में लुभावने विज्ञापन( एक आकर्षक सूचना के रूप में )दिए गये। jbt अध्यापको की भारी कमी को देखते हुए बीएड को jbt पद पर लगाने का notification जारी हुआ । education department ऐसा पहले भी अपनी पिछली भर्तियो में भी करता आया।इस तरह की भर्तिया पहले भी अलग अलग नामों से शिक्षा विभाग में होती रही हैं। हरियाणा के सभी जिलो में व्यापक स्तर पर गेस्ट अध्यापक लगने की प्रक्रिया शुरू हुई,जो नवम्बर 2007 तक जारी रही,तब तक भर्ती पर भाई-भतीजावाद हावी हो चूका था। फलस्वरूप सरकार ने आगे भर्ती करने पर रोक लगा दी। इस भर्ती का सबसे अधिक फायदा हरियाणा के उन बेरोजगार अध्यापको को हुआ,जिनके पास कोई राजनितिक अप्रोच नहीं थी,विशेषकर उत्तर हरियाणा के पिछड़े जिलो में लगभग सभी बेरोजगार अध्यापको को अपनी योग्यता अनुसार रोजगार मिल गया था। ज्यादातर अध्यापको ने अपनी मेहनत व् कौशल से विधालयों के बोर्ड परीक्षा -परिणामों में काफी सुधार किया।फलस्वरूप अभिभावकों की सरकारी विधालयों के प्रति रुझान बढ़ा। सरकारी विधालयो में बच्चो की संख्या में प्रति वर्ष सुधार होता गया।ऐसा सरकार को भी मानना पड़ा। गेस्ट अध्यापक विधालय और अभिभावकों के मध्य एक सेतु का कार्य करने लगे।अध्यापन के साथ साथ अपने हको की लड़ाई को भी जारी रखा।परिणामस्वरूप अभिभावकों व् समाज को भी राजनितिक रूप से भी प्रभावित करने लगे। इन अध्यापको ने अध्यापन व् अपने संघर्ष में गजब का तालमेल स्थापित किया। फलस्वरूप आम वर्ग इनका समर्थक बन गया। ऐसा ग्रामीण परिवेश में ज्यादा देखने को मिला।एक फोजी साहब ने आरोप लगाया कि हुड्डा ने contractual भर्ती(1/2005)को दबा कर गेस्ट भर्ती में अपने चेह्तो को लगाया। अगर ऐसा होता तो,उत्तरी हरियाणा के सभी विधालयो में सोनीपत,रोहतक व् झज्झर के ही अध्यापक नियुक्त होते। किसी स्थानीय को रोजगार नहीं मिलता।कम वेतन देकर काम चलानी वाली सरकार ने नियमित भर्ती की प्रक्रिया को धीमा चलाया। शिक्षा में नए प्रयोग करने के उदेश्य से अध्यापको का एक नया वर्ग खड़ा कर दिया,जिसे पात्र अध्यापक कहा जाने लगा।अब अध्यापक नामक प्राणी की नई परिभाषा गढ़ी गई अर्थात एक अच्छा अध्यापक वही होगा जिसने पात्रता परीक्षा पास की होगी।अध्यापक की गुणवत्ता का मापदंड पात्रता परीक्षा हो गयी।फलस्वरूप गेस्ट अध्यापको व् पात्र अध्यापको में अहं का टकराव बढ़ा ,जिसका तत्कालीन सरकार ने बेखुबी फायदा उठाया। ज्यों ज्यों समय बीतता रहा ,गेस्ट व् पात्र अध्यापको में टकराव बढता गया।विभिन्न कोर्ट केस होते गये,तत्कालीन सरकार कोई कड़ा फैसला न ले पाने के कारण इन्हें आपस में लड़ाती रही।वर्ष 2009 में policy में संशोधन करके सरकार ने गेस्ट अध्यापको को अनुबंध पर ले लिया ,लेकिन कोई ठोस हल नही निकाला।शिक्षा विभाग की अदूरदर्शिता के कारण कोर्ट में भी सरकार अपना पक्ष मजबूती से नहीं रख पाई।कोर्ट द्वारा भी बार-बार सरकार को गेस्ट पालिसी को स्पष्ट करने के लिए कहा गया। सुप्रीम कोर्ट ने तो यहाँ तक भी कहा कि guest faculty के तहत अगर term &condition पूरी हैं,तो सरकार इन्हें article 309 के तहत रेगुलर क्यों नहीं करती?लेकिन सरकार की वोट बैंक की राजनीति और विभागीय अधिकारियो की दिशाहीन मार्गदर्शन ने गेस्ट अध्यापकों के पक्ष को सरकार कोर्ट में मजबूती से रख नहीं पाई। मजबूरन कोर्ट को भी इनके खिलाफ ही निर्णय देने पड़े। आपसी अहं व् राजनितिक अपरिपक्वता के कारण गेस्ट अध्यापक अपनी एकता को भी कायम नहीं रख पाए ।फलस्वरूप ये एकता तीन यूनियन में विभाजित हो गई ,जिसका फायदा तत्कालीन सरकार ने अपने हितों को साधने में बखूबी उठाया। समय बीतने के साथ साथ बाईस हजार की संख्या वाले गेस्ट अध्यापक अब चोदह हजार से भी कम रह गये। इनमे से कुछ अपनी योग्यता और राजनितिक अप्रोच के कारण नियमित भर्ती में adjust हो गये,कुछ अपनी 58 वर्ष की आयु पूरी करके रिटायर हो गये।कुछ मानसिक प्रताड़ना के चलते स्वर्ग सिधार गये और कुछ केद्रीय सेवाओं में चले गये।हुड्डा सरकार इनकी वेतन वृद्धि करती रही और नियमित करने का आश्वाशन देती रही। आज भी गेस्ट अध्यापक इसी आस में बैठे हैं कि उनके भी कभी अच्छे दिन आयेंगे। लगभग नौ वर्षों के संघर्ष में गेस्ट अध्यापकों ने जिन परिस्थितियों का डटकर सामना किया ,वे काबिले-तारीफ हैं,उनका जिक्र यहाँ अप्रासंगिक नहीं होगा।
(1)पात्र अध्यापको द्वारा गेस्ट अध्यापको को पात्रता पास करने की खुली चुनौती दी गई। इस चुनौती को ज्यादातर गेस्ट अध्यापको ने स्वीकार किया और पात्रता पास करके सीधी भर्ती से नियमित अध्यापक भी बने। धीमी गति से चलने वाली नियमित भर्तियो में पात्रता पास सभी गेस्ट अध्यापक अपना स्थान सुनिश्चित नहीं कर पाए।इसके कई कारण थे:(१)हुड्डा शासन काल में की गई सभी अध्यापक भर्तियाँ कुछ सीमा तक भाई भतीजावाद,फर्जीवाड़े व् क्षत्रियता से प्रभावित रही। गेस्ट भर्ती में भी कुछ अध्यापको को अवैध साबित किया जा चूका है।फलस्वरूप योग्यता रखने वाले गेस्ट अध्यापक भी बाहर हो गये।(२)विज्ञापित किये जाने पदों के सेवा नियमो में बदलाव हो जाने से उन पदों की संख्या में भारी गिरावट आ गई,जिन पर पात्र गेस्ट अध्यापक योग्य थे जैसे -TGT ,ऐसे पदों की रिक्तियां बहुत कम निकाली गई।(३)अंधेड उम्र में रोजगार मिलने के कारण बहुत -से गेस्ट अध्यापक भर्ती की निधारित आयु भी पार कर चुके हैं।उन्हें तो किसी भी नियमित भर्ती में आवेदन करने का मौका भी नहीं मिला। यधपि सरकार द्वारा lecturer भर्ती में आयु सीमा का प्रावधान था,लेकिन उसका फायदा ऊंच योग्यता प्राप्त गेस्ट अध्यापको ही मिल पाया। इसके अलावा अन्य कारण भी हो सकते हैं।
(2)अन्य भर्तियो की तरह गेस्ट भर्ती पर भी भाई-भतीजावाद व् फर्जीवाड़े का आरोप लगा। विभागीय जाँच करने पर 719 गेस्ट अध्यापको के रिकॉर्ड में अनियमितता पाई गई,जिसमे से 193 अध्यापको के रिकॉर्ड को ही गलत साबित किया जा सका। इनमे भी ज्यादातर subject-combination के केस हैं,जिन्हें rte के नियम अनुसार समय देकर भी पूरा किया जा सकता हैं। कुछ लोग सीबीआई जाँच की मांग करते हैं,उन्हें सोचना चाहिए कि विभागीय जाँच में पाए गये 193 केस क्या 1930 केसों में बदल जायेगें ?
(3)गेस्ट भर्ती को prt पात्र अध्यापको ने ही ज्यादातर चुनौती दी है।ऐसा करने से वे दो बार prt की नियमित भर्ती कराने में कामयाब हुए हैं,लेकिन वे यह क्यों भूल जाते हैं कि जिनके खिलाफ वे आज खड़े हैं,उन्होंने ही उन्हें संघर्ष करना सिखाया है।आज आप पात्रता पास अध्यापक हो,तो उन्होंने आप में से कुछ को भावी अध्यापक बनाकर अपनी पात्रता साबित नहीं की...?वर्तमान गेस्ट अध्यापकों में से बहुत के पास 5-5 tet सर्टिफिकेट तक पड़े हैं,क्या आप उन्हें इनके बदले उनके कीमती 8-9 साल वापिस कर सकते हैं...?अपनी नकारात्मक सोच को बदल कर सकारात्मक बनाये और ये सोचे कि 9 वर्षो से संघर्ष कर रहे इन अध्यापको का भी शिक्षा विभाग में समायोजन हो जाए और हमें भी रोजगार मिल जाए।गेस्टो को मुर्ख व् जाहिल कहने वाले भावी अध्यापक एक बार अपने आप से पूछे कि अगर वो इनकी जगह होते, तो उन पर क्या बीतती ।
(4)फेसबुक के एक प्रसिद्ध आलोचक फोजी साहब का तर्क है कि गेस्ट भर्ती में एक भी फोजी की नियुक्ति नहीं हुई थी। शायद उन्हें पता नहीं है कि एक गेस्ट फोजी एक गेस्ट यूनियन का 8 वर्षो तक जिला प्रधान रहा है।हम उन से पूछना चाहतें हैं कि क्या वे नहीं चाहते कि गेस्ट मुद्दा सुलझे।ये आप अच्छी तरह जानते हैं कि एक सीमित मात्रा में अनियमिता पाई जाने से पूरी भर्ती रदद नहीं हो जाती। सरकार की नियति और निति अगर स्पष्ट हो ,तो कोर्ट का कोई भी केस मायने नही रखता क्योंकि सविंधान ने राज्य को जनकल्याण की शक्तियां भी प्रदान की हुई हैं।अतः आप एक सकारात्मक आलोचक बने और शिक्षा विभाग की सभी भर्तीयों की उन अनियमिताओं को उजागर करे,जो उस भर्ती में बाधक हैं। अपने कीमती सुझावों से सबको अवगत कराए। याद रखे किसी का बसा- बसाया घर तोडना बहुत आसान होता हैं,लेकिन उसे दोबारा बसाने में वर्षो लग जाते हैं।बुझे हुए चूल्हो की राख़ उड़कर अपने चूल्हो पर भी आकर गिरती है।अंत में हम यही कहना चाहेगें कि जिन्होंने गेस्ट अध्यापको के संघर्ष को नजदीक से देखा है,वे अच्छी तरह से समझते हैं कि रोजगार छीन जाने की पीड़ा कैसी होती है,अब चाहे वो सत्तासीन पार्टी हो या आम इन्सान
BY MY FB FRIEND Pramod Singh Chauhan
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