तात्कालिक राहत:हरियाणा का शिक्षा ढांचा एक बार फिर कोर्ट से निर्देशित हुआ है। शिक्षा विभाग की विसंगतियों व यू टर्नो ने गेस्ट टीचर को ऐसी गेंद का रूप दे दिया जो कभी सरकार तो कभी कोर्ट के पाले में गिरती रही है। पहले सरकार ने 3581 अतिथि अध्यापकों को सरप्लस बताते हुए अदालत में हलफनामा दे दिया, उन्हें निकालने की कार्रवाई भी हो गई, सरकार को पता नहीं किस कारण से अहसास हुआ कि उन्हें सरप्लस बता कर उसने बड़ी गलती की है, उसे सुधारने के लिए उनकी पुन:बहाली की याचिका दायर कर दी। शिक्षा मंत्री की तरफ से उन्हें दीपावली से पहले बहाल करने का ठोस आश्वासन दे दिया गया, जिस पर कोर्ट की फटकार सुननी पड़ी। अब अंतत: उच्च न्यायालय ने हटाए गए सभी सरप्लस गेस्ट टीचरों को अगले वर्ष 31 मार्च तक काम करने की अनुमति दे कर सरकार व अनिश्चय में झूल रहे अध्यापकों को तात्कालिक राहत प्रदान की है। सत्ता
पक्ष की गलतियों को एक बार फिर दुरुस्त करने का अवसर प्रदान करने पर सरकार को अदालत का आभार प्रकट करना चाहिए। इस निर्णय से उन 11 हजार अतिथि अध्यापकों को भी कुछ राहत महसूस होगी जिन पर लगातार सरप्लस घोषित किए जाने का खतरा मंडरा रहा था। अध्यापकों की कमी से सुनसान पड़े सरकारी स्कूलों में फिर से कुछ समय के लिए रौनक लौटेगी और पाठ्यक्रम पूरा करने की चिंता से बच्चों के साथ अभिभावकों को भी छुटकारा मिलेगा। शिक्षा विभाग की अतार्किक, अव्यावहारिक नीतियों के कारण प्रदेश का शिक्षा तंत्र कभी पटरी पर नहीं आ पाया। सरकार स्वयं मान रही है कि सरकारी स्कूलों में अध्यापकों के 25 हजार से अधिक पद खाली हैं, इसके बावजूद साढ़े तीन हजार गेस्ट टीचरों को सरप्लस घोषित कर दिया था, यह प्रबंध के तौर पर बड़ी विफलता थी, अदालत के नए आदेश को सरकार की आंशिक क्षतिपूर्ति ही माना जाएगा। वह अब तक नहीं बता पाई कि गेस्ट टीचरों का कुसूर क्या था? भर्ती सरकार के आदेश से हुई, उन्होंने भर्ती के समय कोई धांधली नहीं की फिर भी सजा क्यों मिली? तमाम घटनाक्रम से सरकार को सबक लेते हुए शिक्षा नीति की पुन: समीक्षा करनी चाहिए। भर्ती प्रक्रिया को मजाक बनाने की गलती कई बार की जा चुकी, अब इसकी पुनरावृत्ति नहीं की जानी चाहिए। नीतियों को व्यावहारिक और भर्ती प्रक्रिया को तार्किक रूप देकर सुनिश्चित किया जाए कि गेस्ट टीचरों की तरह कोई और अधर में न लटके। उनके समायोजन की युक्ति तो निकालनी ही होगी।
पक्ष की गलतियों को एक बार फिर दुरुस्त करने का अवसर प्रदान करने पर सरकार को अदालत का आभार प्रकट करना चाहिए। इस निर्णय से उन 11 हजार अतिथि अध्यापकों को भी कुछ राहत महसूस होगी जिन पर लगातार सरप्लस घोषित किए जाने का खतरा मंडरा रहा था। अध्यापकों की कमी से सुनसान पड़े सरकारी स्कूलों में फिर से कुछ समय के लिए रौनक लौटेगी और पाठ्यक्रम पूरा करने की चिंता से बच्चों के साथ अभिभावकों को भी छुटकारा मिलेगा। शिक्षा विभाग की अतार्किक, अव्यावहारिक नीतियों के कारण प्रदेश का शिक्षा तंत्र कभी पटरी पर नहीं आ पाया। सरकार स्वयं मान रही है कि सरकारी स्कूलों में अध्यापकों के 25 हजार से अधिक पद खाली हैं, इसके बावजूद साढ़े तीन हजार गेस्ट टीचरों को सरप्लस घोषित कर दिया था, यह प्रबंध के तौर पर बड़ी विफलता थी, अदालत के नए आदेश को सरकार की आंशिक क्षतिपूर्ति ही माना जाएगा। वह अब तक नहीं बता पाई कि गेस्ट टीचरों का कुसूर क्या था? भर्ती सरकार के आदेश से हुई, उन्होंने भर्ती के समय कोई धांधली नहीं की फिर भी सजा क्यों मिली? तमाम घटनाक्रम से सरकार को सबक लेते हुए शिक्षा नीति की पुन: समीक्षा करनी चाहिए। भर्ती प्रक्रिया को मजाक बनाने की गलती कई बार की जा चुकी, अब इसकी पुनरावृत्ति नहीं की जानी चाहिए। नीतियों को व्यावहारिक और भर्ती प्रक्रिया को तार्किक रूप देकर सुनिश्चित किया जाए कि गेस्ट टीचरों की तरह कोई और अधर में न लटके। उनके समायोजन की युक्ति तो निकालनी ही होगी।
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